महापुरुषों के चरित्र की एक विशेषता होती है कि उनकी महानता छोटे-छोटे कामों और छोटी-छोटी बातों में भी व्यक्त होती है ।
बेतिया में कोई कार्यक्रम था । बिहार का एक किसान भी गाँधीजी को देखना चाहता था सो वह भी बेतिया के लिए चल पड़ा । किसान की कल्पना में गाँधीजी का बढ़ा-चढ़ा स्वरुप था--- वे विलायती कपड़े पहनते होंगे, फर्स्ट क्लास में चलते होंगे-------
किसान रेलगाड़ी में सवार हुआ, थर्ड क्लास के डिब्बे में । कई आदमी बैठे थे, उन्ही के बीच एक सज्जन लेटे हुए थे, काफी थके जान पड़ते थे । किसान ने हाथ पकड़ कर उन्हें उठाते हुए कहा--- " उठकर बैठें, ऐसे लेटे हो जैसे तुम्हारे बाप की गाड़ी है । " वह महाशय उठ बैठे । उन्हें इस तरह उठाये जाने से न तो खिन्नता थी और न द्वेष-भाव । अब किसान मजे से बैठ गया और छेड़ दी तान उसने---- " धन-धन गाँधीजी महाराज दुःखियों का दुःख मिटाने वाले । डिब्बे के सब लोग मुस्कराते रहे । बेतिया में गाड़ी रुकी तो लोग गाँधीजी को उतारने दौड़े । उनकी जय-जयकार से स्टेशन गूंज उठा । किसान बेचारा यह देखकर स्तब्ध रह गया कि जिस व्यक्ति को उसने हाथ से उठाकर बैठा दिया वही गाँधीजी थे ।
बेतिया में कोई कार्यक्रम था । बिहार का एक किसान भी गाँधीजी को देखना चाहता था सो वह भी बेतिया के लिए चल पड़ा । किसान की कल्पना में गाँधीजी का बढ़ा-चढ़ा स्वरुप था--- वे विलायती कपड़े पहनते होंगे, फर्स्ट क्लास में चलते होंगे-------
किसान रेलगाड़ी में सवार हुआ, थर्ड क्लास के डिब्बे में । कई आदमी बैठे थे, उन्ही के बीच एक सज्जन लेटे हुए थे, काफी थके जान पड़ते थे । किसान ने हाथ पकड़ कर उन्हें उठाते हुए कहा--- " उठकर बैठें, ऐसे लेटे हो जैसे तुम्हारे बाप की गाड़ी है । " वह महाशय उठ बैठे । उन्हें इस तरह उठाये जाने से न तो खिन्नता थी और न द्वेष-भाव । अब किसान मजे से बैठ गया और छेड़ दी तान उसने---- " धन-धन गाँधीजी महाराज दुःखियों का दुःख मिटाने वाले । डिब्बे के सब लोग मुस्कराते रहे । बेतिया में गाड़ी रुकी तो लोग गाँधीजी को उतारने दौड़े । उनकी जय-जयकार से स्टेशन गूंज उठा । किसान बेचारा यह देखकर स्तब्ध रह गया कि जिस व्यक्ति को उसने हाथ से उठाकर बैठा दिया वही गाँधीजी थे ।