31 January 2019

WISDOM --- ---

 महात्मा  गाँधी  देश  की  नब्ज  को  सबसे  अधिक  पहचानते  थे  ,  उन्होंने  चुन - चुन  कर  ऐसे  कार्यक्रम  चालू  किये  थे  जिनसे  देश  का  सार्वजनिक  विकास  हो  l  वे  जानते  थे  कि  केवल  राजनीतिक  आन्दोलन  से  स्वराज्य  नहीं  मिलेगा   और  यदि  वह  किसी  प्रकार  मिल  भी  जाये   तो  उससे  लाभ  नहीं  उठाया  जा  सकता  l  जब  तक  यहाँ  के  स्त्री - पुरुषों  में  अनेक  प्रकार  के  दोष   बने  रहेंगे  ,  जब  तक  हानिकारक  रूढ़ियों  से  उनका  पिण्ड  नहीं  छूटेगा  ,  तब  तक  वे  प्रगति  के  पथ  पर  कदापि  अग्रसर  नहीं  हो  सकते  l  इसलिए  उन्होंने  महिलाओं  की जागृति,  अछूतोद्धार ,  सादा  रहन - सहन  ,  धार्मिक  उदारता  ,  श्रमजीवियों  से  सद्व्यवहार  आदि  अनेक  लोकहितकारी  प्रवृतियों  को  जन्म  दिया  l
 इन  सब  कार्यक्रमों  में  ' महिला  जागरण '  का  आन्दोलन  बहुत  महत्वपूर्ण  था  l  असहयोग आन्दोलन  के  आरम्भ  में  ही  महात्माजी  ने  ' नारी - जागरण का  शंखनाद  किया  l  उन्होंने  कहा  कि  यदि देश  की  आधी  जनसँख्या   स्वाधीनता  संग्राम  से  पृथक  और  उदासीन  बनी  रहेगी  , तो  भारतवर्ष  कभी  सच्चे  अर्थों में  स्वाधीन  न  बन  सकेगा  l  वे  कहते  थे   नारी  तो  शक्ति  स्वरूपा  है  , जब  तक  वह  पुरुषों  का  साथ  नहीं  देगी ,  उसे  प्रोत्साहित  न  करेगी ,  विजयी  होकर  लौटने  पर   उसका  प्रेमपूर्वक  स्वागत  नहीं  करेगी  तब  तक  पुरुष  पूरे  अंत:करण  से  स्वाधीनता  समर  में  भाग  न  ले  सकेंगे  l   असहयोग आन्दोलन  में  जहाँ  लाखों  की  संख्या  में पुरुष  जेल  गए  वहीँ  हजारों  की  संख्या  में  स्त्रियों  ने  भी  जेल यात्रा  की   l  उस  समय  स्त्रियाँ  राजनीतिक  बातों  को  अधिक  नहीं  समझती  थीं  ,  पर  गांधीजी  के  ऊपर उनका  भगवान  की  तरह  विश्वास  हो  गया  था  l  असहयोग  आन्दोलन  में  जेल  जाने  वाली  सभी  स्त्रियाँ  बड़ी  सभी , सह्रदय  और  ऊंचे  परिवारों  की  ही  थीं  l  अनेक  विद्वानों  का  मत  है  कि   गाँधी - युग  ही  भारतीय  समाज  की  काया  पलट  करने  वाला  युग  है  l  

30 January 2019

WISDOM------ सत्य , प्रेम , करुणा, सेवा , संवेदना , क्षमा आदि गुणों से युक्त व्यक्ति ही धार्मिक है l

 धर्म  ही  वह  तत्व  है  जिसके  कारण  मनुष्य  आकृति  के  साथ - साथ  प्रकृति  से  भी  मनुष्य  बन  पाता  है  l धर्म  के  अभाव  में   मनुष्य ,  मनुष्य  जैसा  दिख  अवश्य  सकता  है  ,  पर मनुष्य  हो  नहीं  सकता  l
धर्म  को  धारण  करने  वाला  व्यक्ति  सदा - सदा  के  लिए  अजेय  व  अभय  हो  जाता  है   l  ऐसे  व्यक्ति  की  प्रतिभा  और  पुरुषार्थ  से  सारी  वसुधा  निहाल  होती  है  ,  वे  व्यक्ति  और  समाज  को  ऊँचा  उठाने  में   अपनी  सारी  शक्तियां  लगा  देते  हैं   l  
  एक  बार  साम्यवादी   विचारधारा  के  एक  पाश्चात्य  विद्वान  महात्मा  गाँधी  के  पास   जा कर  बोले ---- ----" महात्माजी  ! जब  संसार  में  इतना  छल - कपट , अशांति  और  खून - खराबा  चल  रहा  है  ,  तब  भी  आप  धर्म  की  बात  करते  हैं  l  बुराइयाँ  और  रक्तपात  जितनी  तेजी  से  बढ़  रहे  हैं  ,  उसे देखते  हुए  धर्म  निहायत  बेकार  चीज  है  l  "
 बापू  ने कहा --- " महोदय  !  जरा  सोचिये  तो  सही  कि  जब  धर्म  की मान्यता  रहते  हुए  लोग  इतनी  अशांति  फैलाये  हुए  हैं ,  तो  उसके  न  रहने  पर  यह  कल्पना  सहज  ही  की  जा  सकती  है  कि  तब  संसार  की  क्या  दशा  होगी  ?  " इस  पर  उन  सज्जन  से कोई  जवाब  देते  नहीं  बना  l 
   महात्मा  गाँधी  ने  अपना  सम्पूर्ण  जीवन  सत्य  की  प्रयोगशाला  बना  दिया  था  l  सेवा  , परोपकार   और  प्रार्थना  का  उनके  जीवन  में  महत्वपूर्ण  स्थान  था   और  इन्ही  भावनाओं  के  कारण   वे  आजीवन   अहिंसा  के  धर्म  का  पालन  कर  सके   l   

29 January 2019

WISDOM ----- विचार कभी नष्ट नहीं होते

 मनुष्य  जीवन  तो  पानी  का  बुलबुला  है  l  वह  पैदा  भी  होता  है  और  मर  भी  जाता  है  l  किन्तु   शाश्वत  रहते  हैं  उसके  कर्म  और  विचार   l  मनुष्य  के  विचार  ही  उसका  वास्तविक  स्वरुप  होते  हैं   l  ये  विचार  ही  नए - नए  मस्तिष्क  में  घुसकर   ह्रदय  में  प्रभाव  जमाकर  मनुष्य  को  देवता  बना  देते  हैं   और  राक्षस  भी  l  जैसे  विचार  होंगे   , मनुष्य  वैसा  ही  बनता  जायेगा   l 
  चीन  में  कुंग  फुत्ज़  के  दो  सौ  वर्ष  पश्चात्  एक  राजा  ने  उनके  विचारों ,  उनकी  शिक्षाओं  को  नष्ट  करने  का  प्रयास  किया  l  उनकी  लिखी  पुस्तकें ,  उनके  उपदेश  व  शिक्षाओं  के  संग्रह  उसने  जला  दिए  l  जो  लोग  उनके  मतानुयायी  थे   और  प्रचार  करते  थे   उन्हें  उसने  मौत  के  घाट  उतार  दिया   l  फिर  भी  कुंग  फुत्ज़  के  विचार  मरे  नहीं  ,  वे  और   जीवंत   हो  उठे      l  उनके  उपदेश  लोगों  के  मन  में ,  मस्तिष्क  में  ,   ह्रदय   और    अंत: करण  में  उतरा  l  बाद  के  सम्राटों  ने  उन  विचारों  को  स्वीकारा   l  1912  तक  उनके  द्वारा  चलाया  गया  धर्म   चीन  का  राजधर्म  था  l  आज  भी  चीन  में  करोड़ों  व्यक्तियों  को  उनके  उपदेश  कंठस्थ  हैं  l  यह  है  विचारों  का  अमृतत्व  l  

28 January 2019

अकबर का मान - मर्दन करने वाली --- रानी दुर्गावती

 जिस  समय  सम्राट  अकबर  के  दबदबे  से  बड़े - बड़े  राजा  उसके  आधीन  हो  गए ,  उस  समय   नारी  होते  हुए  भी   एक  छोटे  से  राज्य  गढ़ मंडला  की  रानी  दुर्गावती  ने  दो  बार   दिल्ली  सम्राट  की  विशाल  सेना  को  पराजित  कर  पीछे  खदेड़  दिया  l 
  पति  दलपति शाह  की  मृत्यु  हो  जाने  पर  दुर्गावती  ने  राज्य  का  प्रबंधन  इतनी  योग्यता  व  कुशलता  से  किया  कि   राज्य  का  वैभव  बढ़ने  लगा  l  राज्य  की  समृद्धि  बढ़ने  लगी   और  रानी  दुर्गावती  का   यश  भी   चारों  और  फैलने  लगा   तो  उनसे  ईर्ष्या  करने  वाले  भी  पैदा  हो  गए  l 
  अगर कोई  पुरुष  शासक  ऐसी  उन्नति  करता  तो  संभवत:  लोगों  का  ध्यान  उस  तरफ  अधिक  आकर्षित  न  होता  ,  पर  एक  स्त्री  का  इतना  आगे  बढ़ना  और  अधिकांश  पुरुष  शासकों   के  लिए   उदाहरण  स्वरुप  बन  जाना  उनको  खटकने  लगा  l 
  आसफखां  की  गिनती  मुग़ल  साम्राज्य  के  प्रसिद्ध  सेनाध्यक्षों  में  होती  थी  l  मुग़ल  शासक  इस  वीरांगना  की  शक्ति  से  सशंकित  थे   l    प्रथम  बार  के  आक्रमण  में  रानी  दुर्गावती  से   बुरी  तरह  हार  कर   आसफ खां  बड़ा  दुःखी  हुआ  कि  एक  स्त्री  से  हार  कर  वह  अपना  मुंह  दुनिया  को  कैसे  दिखायेगा   l  उसने  इस  बात  को  अपने  लिए  बड़ा  अपमानजनक  समझा  l उसने  अपने  अधीनस्थ  अधिकारीयों  को  भी   बहुत  लानत - मलामत  दी  कि  तुम  एक  औरत  के   सामने  पीठ  दिखाकर  भाग  आये  और  फिर  भी  बहादुरी  का  दम  भरते  हो  l
अब  उसने  अपनी  सारी   बुद्धि  इसका  प्रतिकार  करने  की  युक्ति  सोचने  में  लगा  दी   l  l   

WISDOM ---- मानसिक दासता से अधिक हानिकारक और किसी भी तरह की दासता नहीं होती ------ लाला लाजपत राय

 लाला  लाजपत राय  एक  आदर्श  पुरुष  थे  ,  उन्होंने  अपने  आदर्शों  की  व्याख्या  करते  हुए   स्वयमेव  एक  स्थान  पर  कहा  है ---- " मेरा  मजहब  हकपरस्ती  है  l  मेरी  मिन्नत  कौम  परस्ती  है  l मेरी  इबादत  खलक  परस्ती  है  l  मेरी  अदालत  मेरा  अंत:करण  है  l  मेरी  जायदाद  मेरी  कलम  है   और  मेरा  मंदिर  मेरा  दिल  है   और  मेरी  उमंगें  सदा  जवान  हैं   l  " 
  जब  अक्तूबर  1928  में  साइमन  कमीशन  पुन:  भारत  आया  और  30 अक्तूबर  को  लाहौर  स्टेशन  पहुंचा   तब  लालाजी  ने  जनता  के  साथ  वहीँ  जाकर  उसका  बहिष्कार  किया  l  उन्होंने  अपने  ओजस्वी  भाषण  से  जनता  के  ह्रदय  में  जोश  भर  दिया  l  जनता  सुनती  और  ' साइमन  लौट  जाओ '  का  नारा  लगाती  l  जनता  के  उत्साह  और  लालाजी   की   द्रढ़ता  देखकर  कप्तान  सैंडर्स  से  न  रहा  गया  l  उसने  लालाजी  पर  लाठियां  चलाने  की  आज्ञा  दे  दी  l  जनता  में  भयानक  विक्षोभ  की  लहर  दौड़  गई  किन्तु  लालाजी  ने  उन्हें  शान्त  रहने  का  निर्देश   करते  हुए  कहा ---- "  आप  सब  लोग  शांतिपूर्वक  मेरे  ऊपर  होते  इस  अत्याचार  को  देखें   और  विश्वास  रखें  कि ---- मेरे  ऊपर  होने  वाली   लाठी  की  एक - एक  चोट   ब्रिटिश  साम्राज्य  के  कफन  की  एक - एक  कील  सिद्ध  होगी  l  "  जनता  शांत  सुनती  रही ,  लालाजी  बोलते  रहे  और  पुलिस  की  लाठी  चलती  रही  l  लाला  लाजपत राय  अपने  स्थान   तक  से  विचलित  न  हुए   और  तब  तक  बराबर  बोलते  और  लाठियां  खाते  रहे  जब  तक  उन्होंने  अपना  भाषण  पूरा  नहीं  कर  लिया  -----  धन्य  थे  पंजाब  केसरी  लाला  लाजपत राय  l  
  पुलिस  की  निर्दय   लाठियों  से  उनके  कलेजे  में  सांघातिक  चोट  आई ,  वे  चारपाई  पर  पड़  गए  तो  फिर  उठ  न  सके  ----
लाला  लाजपत  राय  ने   साहित्य   के  क्षेत्र  में  जो  योगदान  दिया  उससे  युवाओं  में   स्वाधीनता  के  लिए  जोश  जाग्रत  हुआ  l  उन्होंने   मेजिनी , गैरीबाल्डी ,  शिवाजी , कृष्ण ,  दयानंद   आदि  महापुरुषों  की  बहुत  सी  शिक्षाप्रद  जीवनियाँ  लिखीं  l  '  आर्य  समाज  और  भारत  का  राजनीतिक  भविष्य '  नामक  उनकी  पुस्तक  बड़ी  उपयोगी  सिद्ध  हुई   l  उनके  ' यंग  इंडिया  '  नामक  ग्रन्थ  ने  भारतीय  स्वतंत्रता  संग्राम  को  विशेष  गति  दी  और  उनके  ' दुःखी  भारत '  नामक  ग्रन्थ  का  तो  जनता  में  अभूतपूर्व  स्वागत  हुआ   l 
 लालाजी  का  जीवन  एक  सफल  और  सार्थक  व्यक्ति  का  जीवन  था  l  उनके  विषय  में  उनके  एक  जानकार  श्री  ऐलबिलव्काक्स  ने  लिखा  है  ----- " यौवन  ने  उन्हें  बहादुर ,  समय  ने  राजनीतिज्ञ,  प्रेम  ने  मनुष्य  घोषित  किया   l  मृत्यु  ने  उन्हें  शहादत  का  ताज  पहनाया  l  इस  प्रकार  वे  मंजिल  तय  करते  हुए  महानता  की  ओर  बढ़ते  गए  l  मानव - जीवन  में  संभव  सब  प्रकार  की  विभूति  और  यश  का   उन्होंने  अनुभव  किया   l  वे  एक  पवित्र  और  ऊँची  आत्मा  थे   l  "

27 January 2019

WISDOM ------

संसार  में  लोग   प्रत्यक्ष  शक्ति , प्रभाव  और  आर्थिक  सफलता  की  ही  पूजा  करते  रहे  हैं  ,  पर  मानवता  की  सच्ची  भावना  उससे  कहीं  अधिक  महत्वपूर्ण  है   l  आर्थिक  सफलता  छाया  की  तरह  अस्थायी  होती  है   और  राजनीतिक  सफलता  उससे  भी  अधिक  क्षण भंगुर   होती  है   l  राजनीति  एक  सामयिक   खेल  है   जिसकी  अधिक  प्रशंसा  उसी  समय  तक होती है   जब  तक  दर्शक  उसे   देखते  रहते  हैं  l  लेकिन  मानव -सेवा , परोपकार   कि  वृति,  दूसरे  के  लिए  आत्म त्याग  कि  भावना  आदि  ऐसे  गुण  हैं   जिनकी  जन समुदत  तत्काल  प्रशंसा  न  करे  ,  पर  इसकी  महत्ता  लोगों  के  दिल  में  घर  कर  जाती  हैं  और  धीरे - धीरे  बढती  हुई   पल्लवित , पुष्पित   और  फलदायक   होती  दिखलाई  पड़ती  है   l 

26 January 2019

WISDOM ------ इतिहास से शिक्षा लें -----

 पं. श्रीराम शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय -- ४४  में  पृष्ठ   1.2  पर  लिखा  है ---- ' सच  पूछा  जाये  तो  भारतवर्ष   की  पराधीनता  का  एक  बड़ा  कारण  यहाँ  के  शासक  वर्ग  का  झूठा  अहंकार   और   जांत - पांत  का  भेदभाव  ही  था  l  इससे  उनकी  एकता  नष्ट  हो  गई   और  वे  छोटे - छोटे  टुकड़ों  में  बंटकर  तीन - तेरह  हो  गए   l  उनकी  देखा - देखी  उनकी  प्रजा  में  भी  ऊँच - नीच  और  छोटी - बड़ी  जाति  का  विष  फैल  गया  और  समस्त  देश   एक  संगठित  शक्ति  होने  के  बजाय   छोटे - छोटे  भागों  में  विभाजित    लोगों  की  भीड़  की  तरह   हो  गया  l   ऐसी  दशा  देखकर   विदेशियों  का  आकर्षित  होना  स्वाभाविक  ही  था  l  वे  धर्म ,  आचार - विचार , वेश , भाषा   आदि  सब  द्रष्टियों  से  समान  थे   और  इस  आधार  पर  पूर्णत:  संगठित  थे   l  जब  उन्होंने  देखा  कि  भारतवर्ष  जैसा   सम्रद्ध   तथा  सब  प्रकार  के  साधनों  से  संपन्न  देश  ऐसे  असंगठित  और  आपस  में  फूट  रखने  वाले  लोगों  के  अधिकार  में  है   तो  उन्होंने  उसे  बलपूर्वक  छीन  लिया   l    यदि  ऐसा  न  होता  तो  कोई  कारण   न  था  कि   कुछ  हजार  आक्रमणकारी    करोड़ों  की  आबादी  वाले  देश  को     कुछ  वर्षों  में  पद - दलित  कर  के   यहाँ  अपना  शासन  स्थापित  कर  सकते   l   बिहार  के  कुछ  नगरों  के  लिए  तो  इतिहासकारों  ने  यहाँ  तक  लिखा  है  कि  बखित्यार  खिलजी  ने   केवल   अठारह   सवारों  को  लेकर  ही  कब्जा  कर  लिया  था  l  "  

25 January 2019

WISDOM -----

' देश - प्रेम , स्वतंत्रता  की रक्षा ,  संस्कृति  और  धर्म  के  क्षरण  को   रोकने  के  लिए  जिन - जिन महापुरुषों  और  क्रांतिकारियों  ने  बलिदान   दिए  हैं   वे  भले  ही  स्थूल  जीवन का  आनंद   न  ले  सके  हों  , पर  काल  पर  विजय  प्राप्त कर   महामानव   बनने  का  श्रेय  उन्हें  प्राप्त  होता  रहा  है  l 

WISDOM -----

 "  नन्ही  सी  चिंगारी  ! तुम  भला  मेरा  क्या  बिगाड़  सकती  हो  ,  देखती  नहीं  मेरा  आकार  ही  तुमसे  हजार  गुना  बड़ा  है  l  अभी  तुम्हारे  ऊपर  केवल  गिर पडूं  तो  तुम्हारे  अस्तित्व  का  पता भी  न लगे  l  "  तिनके  का  ढेर  अहंकार पूर्वक  बोला  l 
  चिनगारी  बोली  कुछ  नहीं  ,  चुपचाप  ढेर  के  समीप  जा  पहुंची  l  तिनके  उसकी  आंच  में  भस्म  होने  लगे  l   अग्नि   की   शक्ति  ज्यों - ज्यों  बढ़ी  ,  तिनके  जलकर  नष्ट  होते  गए  , देखते - देखते  भीषण  रूप  से  आग लग  गई  और  सारा  ढेर   राख    में  परिवर्तित  हो  गया  l
  यह  द्रश्य  देख  रहे  आचार्य  ने    अपने  शिष्यों  को  बताया  ---- " बालकों  ! जैसे  आग  की  एक  चिनगारी  ने   अपनी  प्रखर  शक्ति  से   तिनकों  का  ढेर  खाक  कर  दिया  l  वैसे  ही  तेजस्वी  और  क्रियाशील  एक  व्यक्ति  ही    सैकड़ों  बुरे  लोगों  से  संघर्ष  में    विजयी  हो  जाता  है   l  " 

23 January 2019

WISDOM ------ ह्रदय की पवित्रता में ईश्वर का निवास होता है

    स्वामी  विवेकानंद  कश्मीर  के क्षीर  भवानी  मंदिर  गए  l  देखा  मंदिर  टूटा  हुआ  था  l  मन - ही - मन  निश्चय  किया  कि  इतना  सुन्दर मंदिर  ,  इतना  पुराना  भव्य  शिल्प  ,  मैं  इस  मंदिर  को  बनवाऊंगा  l  कहा  जाता है कि  भगवती  साक्षात्  प्रकट  हुईं  और  बोलीं ---- " मैंने  त्रिभुवन  का  निर्माण  किया  है  l  तू  मेरे  लिए  क्या  बनाएगा  !   भगवन  के  लिए  कुछ बनाना  है  , तो  घर - घर में  ईश्वरीय  प्रेरणा  फैला  l  सब  घरों  को   आदर्श  स्वर्ग  जैसा  अनुपम  बना  l  "  स्वामीजी  ने  माँ  का  आदेश  शिरोधार्य  किया   एवं  वही  कार्य  जीवन  भर  किया  l  

20 January 2019

WISDOM ------ गुरु की महानता

 महर्षि  आश्वलायन  अपने  शिष्यों  को   संस्कृति  और  संस्कार    से  परिचित  कराते  थे  ,  जीवन  के  मूलभूत  सिद्धांत  से  लेकर  अध्यात्म  की शिक्षा  देते  थे l  लेकिन  आज  उनके  माथे  पर  चिंता  की  लकीरें  थीं  l  निकट  राज्य  के  सेनापति  ने  बताया   कि  उनका  शिष्य  देवदत्त  दस्यु  बन  गया  l  महर्षि  ने   सेनापति  से  कहा   की  तुरंत  देवदत्त  के  पास  चलो  l  सेनापति  को  भय  और  संकोच  था  क्योंकि  वह  दस्यु  कितने  ही  निरपराध  लोगों  की  हत्या  कर   चुका   था  l 
 महर्षि  ने  सेनापति  से  कहा --- " वत्स !  गुरु  का  दायित्व  ही  अंधकार  से  प्रकाश की  और  ले जाना  होता  है  l  यदि  आज  मैं   अपने  दायित्व से  विमुख  हो  जाऊँगा   तो  आने  वाली  पीढ़ी को  सत्य  और  धर्माचरण  की  शिक्षा  कैसे  दूंगा  l  यदि  मेरी  दी  गई  शिक्षाओं  में  ,  मेरे  आचरण  में   सत्य  और धर्म  का  समावेश  है   तो  मैं  और  तुम  दोनों  सुरक्षित  लौटेंगे   और  यदि  मेरी  दी  गई  शिक्षाएं  दुराचरण  पर  आधारित  हैं   तो  हमारा  नष्ट  हो  जाना  ही  श्रेष्ठ  है  l  "  
  चलते - चलते  महर्षि  व  सेनापति   उस  जंगल  में  पहुंचे  ,  महर्षि  अब   दस्यु  देवदत्त के  सामने  खड़े  थे  ,  उसके  हाथ  में  रक्तरंजित  तलवार  थी  l  विषाक्त  वातावरण  में  रहने  के  कारण  वह  तो महर्षि  को  भूल  ही  गया  था  l  महर्षि  ने  उससे  प्रेम  से  पूछा --- " कैसे  हो  पुत्र  देवदत्त ! क्या  घर  की  याद  नहीं  आती  ? "  इतने  वर्षों  में  किसी  ने  पहली  बार  उससे  प्रेम  से बोला  l  महर्षि  से  आँख  मिलते  ही  उसकी  आँखों  से  अश्रुधारा  बहने  लगी  ,  वह  उनके  चरणों  में  गिर  पड़ा  l   महर्षि  ने  उसके  मस्तक  पर  हाथ  फेरते  हुए  कहा --- "पुत्र  देवदत्त  !  मेरी  शिक्षाओं  में  क्या  कमी  थी   जो  हमारी - तुम्हारी  भेंट  इस  मोड़  पर  हुई ,  तुम्हारे  हाथ  निर्दोषों  के  रक्त  से   रंगे   हैं  l  जीवन  तुम्हे  यहाँ  कैसे  ले  आया ,  पुत्र  ! "
देवदत्त  ने  कहा --- " गुरुदेव  !  कमी  आपकी  शिक्षाओं  में  नहीं  थी   l   मेरे  पिता  राज्य  के  मंत्री  थे  ,  उनकी  प्रवृति  दूषित थी   l  गुरुकुल  से  लौटने  के  उपरांत   मैंने  प्राप्त  शिक्षाओं  के  अनुसरण  का  भरसक  प्रयत्न  किया  l  किन्तु  परिवार  में  व्याप्त  कलुषित  चिंतन  ने  मुझे  इस   पथ   पर  ला  पटका  l   आज  आपके  प्रेम  ने  मुझे  वे  सब  शिक्षाएं  याद  दिला  दीं  l मुझे  क्षमा  करें  गुरुवर  ! "
 महर्षि  बोले --- '  भूल  तो  अनुशय  से  होती  ही  हैं  , परन्तु सच्चा  गौरव  उनका  सही  प्रायश्चित करने  में  है  ,  उन  पर  ग्लानि करने  में  नहीं  l       यदि  तुम  क्षमा  चाहते  हो  तो  उन  निर्दोषों  के  घरों  को  पुन: नवजीवन  दो  ,  जो  तुमने  अज्ञानवश  नष्ट  किये  हैं  l  हर  उस  पीड़ित व्यक्ति  से  निकलते  क्षमा के  स्वर   तुम्हारे  जीवन  को  स्वत:  ही  सुगंध  से  भर  देंगे  l  l "
देवदत्त  को  महर्षि   का  कथन    समझ  में   आ  गया  था  l  यह  अधर्म  पर  धर्म  की विजय  थी  l  

19 January 2019

WISDOM ------ जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता

 वैराग्य   शतक  में  भतृहरि  ने  लिखा  है ----- भोग  में  रोग  का  भय  है ,   सामाजिक  स्थिति ( सत्ता ) में  गिरने  का  भय  है,  धन  में  खोने  का , चोरी  होने  का  भय  है ,  मान - सम्मान  में  अपमान  होने  का  भय  है   सत्ता  में शत्रुओं  का  भय  है ,   सौन्दर्य  में  बुढ़ापे  का  भय  है   और  शरीर  में   मृत्यु  का  भय  है  l  इस  तरह  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है   l  
  अध्यात्म्वेताओं  के  अनुसार    भय  के  मूल  में    वासना - कामना ,  तृष्णा  और  अहंता  होती  है   l  इन्ही  के  कारण  व्यक्ति   पापकर्म  करता  है , अनैतिक  जीवन  जीता  है  l  यही  कारण  है  कि  चोर , डाकू ,  व्यभिचारी, अत्याचारी ,   आतंकी,   भ्रष्टाचारी ,  अपराधी   कभी  चैन  से  निश्चिन्त  नहीं  बैठ   पाते  l  उन्हें  हमेशा  भय  रहता  है  कि  उनकी  करतूत  की  पोल  न  खुल   जाये  l 
  ईश्वर  की  शरण  और  सत्कर्मों  की  राह  समस्त    भय  के   समूल  नाश  का   राजमार्ग  है   l  

18 January 2019

WISDOM ----- सौभाग्य और दुर्भाग्य जीवन के दो पहलू हैं

 जब  जीवन  में  कुछ  अच्छा  घटने  वाला  होता  है   तो  उसका  पूर्व  संकेत  मिल  जाता  है   किन्तु  दुर्भाग्य   बिना  पूर्व  संकेत  के  अचानक  आ  जाता  है    क्योंकि  यह  बीते  कल  के  सभी  दुष्कर्मों  की  परिणति   है   जिसे  भोगना  है   l   ऐसा  सबके  साथ  होता  है  --- भगवान  राम  के  राज्याभिषेक  की   तैयारी   थी   किन्तु  दुर्भाग्य  कानोकान  खबर  दिए  बगैर  आया  और  राम  को  राज्याभिषेक  के  स्थान  पर  चौदह  वर्ष  का  वनवास  हो  गया  , l  यहाँ  भी  दुर्भाग्य  ने  पीछा  नहीं  छोड़ा  , रावण  ने  सीताजी  का  हरण  कर  लिया  l 
   इसी  तरह  महाभारत  में  पांडव  लगातार  संघर्ष  कर  रहे  थे  और  धर्म  के  मार्ग  पर  थे  l  युद्ध  में   वीरता  से  लड़  रहे  थे  l  स्वयं  भगवान  कृष्ण  उनके  साथ  थे   लेकिन  दुर्भाग्य  की  ऐसी   काली    छाया   पड़ी  कि  अर्जुन  का  पुत्र ,  भगवान  कृष्ण  का  भानजा  अभिमन्यु  चक्रव्यूह   में  फंसकर  अधर्मियों  के  हाथों  मारा  गया  l  युद्ध   समाप्ति  पर  था  और  द्रोपदी  के  पाँचों  पुत्रों  का  वध  हो  गया  l 
 दुर्भाग्य  का  आक्रमण  ऐसा  होता  है  कि पल  भर  में  सब  कुछ  बदल  जाता  है  l 
  ऋषियों  का  मत  है  कि  जो  प्रारब्ध  भोग  है ,  वह  तो  भोगना  ही  है   लेकिन  यदि  सुख - सौभाग्य  के  समय  सेवा , परोपकार  जैसे  श्रेष्ठ  कार्य  किये  जाएँ  तो  दुःख  की  चुभन  कम  हो  जाती  है   l 
 इसलिए  सुख  के  समय  हमें  जागरूक  रहना  चाहिए   कभी  किसी  का  दिल  न  दुखाए,  किसी  को  शारीरिक  मानसिक  कष्ट  न  दे  ,  ईमानदारी  से  कर्तव्यपालन  करे  ,  यही  तपस्या  है  l  

17 January 2019

WISDOM ---- सत्कर्मों से अपने लिए सुन्दर दुनिया बना सकते हैं

  इस  स्रष्टि  में  सबसे  महत्वपूर्ण  मनुष्य  के  कर्म  हैं  l किये  गए  कर्मों  के  आधार  पर  ही   वह  अपनी  गति  प्राप्त  करता  है  l  यह  मनुष्य  की  अदूरदर्शिता   है  कि  वह  क्षणिक  लाभ के  लिए  वर्तमान  में बुरे  कर्म  करने  के  लिए  तैयार  हो  जाता  है  l  कर्मों  का फल  तुरंत  नहीं  मिलता  है    इसलिए  मनुष्य  को  भी  अपने  किये  गए  कर्मों  का  कोई  एहसास  नहीं  होता  l  उसे लगता  है  कि  इतने  सारे  लोग  गलत  कार्य  कर  रहे  हैं   और  जीवन  में  सुख - भोग  कर  रहे  हैं  ,  सफल  हैं    तो  वह  भी  क्यों  न  करे   ? 
  कर्म  की  गति  बड़ी  गहन  है  l  इसे  समझने   के  लिए  हमें  इतिहास  से  ,   समाज  से   उदाहरण  देखना  चाहिए   l  व्यक्ति  के  सम्पूर्ण  जीवन  को  देखना  चाहिए ,  थोड़े  से  जीवन  को  नहीं  l  समाज  के  अच्छे   और  बुरे    व्यक्तियों  के   सम्पूर्ण  जीवन  का  गहराई  से  अध्ययन  कर  के  ही    प्रकृति  की    कर्मफल   व्यवस्था  समझ  आएगी   l  व्यक्ति  का विवेक  जाग  जायेगा  तब  वह  गलत  कर्म  करने  से  डरेगा   l 
     कर्म  के  दर्शन  को  समझाने वाली  एक  कथा   है  ------   एक  बार  एक  राजा ने  अपने  मंत्री  से  कहा --- " मुझे इन  चार  प्रश्नों  के  जवाब  दो  --- 1. जो  यहाँ  है , वहां  नहीं  l  2.  वहां  हो ,  यहाँ  नहीं
3. जो  यहाँ  भी  नहीं  हो , वहां  भी  न  हो  l  4.  जो  यहाँ  भी  हो  और  वहां  भी  हो  l  "
  मंत्री ने  उत्तर देने  के  लिए  दो  दिन  का  समय  माँगा  l  दो  दिन  बाद  चार  व्यक्तियों  को  लेकर  वह  दरबार  में  उपस्थित  हुआ   और  बोला  --- "  राजन  !  हमारे  धर्मग्रंथों  में   अच्छे  और  बुरे  कर्मों   के  अनुसार  स्वर्ग  और  नरक  की  अवधारणा  प्रस्तुत  की  गई  है  ----
1.  यह  पहला व्यक्ति  भ्रष्टाचारी  है  l  यह  गलत  काम  कर  के  यद्दपि  यहाँ  सुखी  व  संपन्न  है   किन्तु  इसकी  जगह  वहां  स्वर्ग  में  नहीं  है  l
2.  दूसरा  व्यक्ति  सद्गृहस्थ  है  l  यह  यहाँ  ईमानदारी  से  रहते  हुए  कष्ट    में   जरुर  है  ,  पर  इसकी  जगह  वहां  जरुर  होगी  l 
3.  तीसरा  व्यक्ति  भिखारी  है  ,  यह  पराश्रित  है   l यह  न  तो  यहाँ  सुखी  है  , न  वहां  सुखी  रहेगा  l
4.  यह  चौथा  व्यक्ति  एक  दानवीर  सेठ  है   जो  अपने  धन  का  सदुपयोग  करते  हुए  भलाई  भी  कर  रहा  है   और  सुखी - संपन्न  भी  है  l  अपने  उदार  व्यवहार  के  कारण  यहाँ  भी  सुखी  है   और   सत्कर्म  करने  से इसका  स्थान  स्वर्ग  में  भी  सुरक्षित  है   l
  मनुष्य  कर्म  करने  के  लिए  स्वतंत्र  है   लेकिन  उन  कर्मों  का  फल  कब  मिलेगा  , यह  काल  ( समय )  निश्चित  करता  है  l  

16 January 2019

WISDOM ------- ईश्वर सत्य है

  मनुष्य  जैसे - जैसे  बड़ा  होता  है  ,  ज्ञान  प्राप्त करता  है  तो  तर्क - कुतर्क  करता  है  l  बच्चों  में  छल - कपट  नहीं  होता   l   जो  सत्य  है  , वही  कहते  हैं  l  एक  कथा  है -----
  एक   बहुत  विद्वान्  व्यक्ति  था  ,  उसने  सभी  धर्म  व  दर्शन  के  ग्रन्थ  पढ़े  थे   l  लेकिन  वह  नास्तिक  था  ,  अपने  तर्कों  से  ईश्वर  के  अस्तित्व  को  नकार  देता  था  l  उससे  कोई  जीत  नहीं  पाता  था  l   उसने  बड़े - बड़े  अक्षरों  में  अपने  घर  की   दीवार  पर लिख  रखा  था --- ' गॉड  इज  नो  व्हेयर ' l    अर्थात  ईश्वर  कहीं  नहीं  है   l     लोगों  को  ऐसा  बताकर  उसे  बड़ी  प्रसन्नता  होती थी  l
 कुछ  समय  बाद  उसका  विवाह  हुआ   l  उसके  एक  पुत्र  हुआ  l  वह  बालक  बहुत  भोला   व  मासूम  था  l  जब  उसने  पढ़ना सीखा    तो  दीवार  पर  लिखे इतने  बड़े वाक्य  ' गॉड  इज  नो  व्हेयर '  को  पढ़ना  उसके  लिए कठिन  था  l  वह  बच्चा  ' गॉड  इज '  तो  आसानी  से  पढ़  लेता  था ,  लेकिन   ' नो  व्हेयर ' पढ़ने  में  अटक  जाता  था  l  उसके  लिए  यह  बड़ा  शब्द  था  ,  एक  साथ  उसका  उच्चारण  कठिन  था   l  इसलिए बच्चे  ने  उस  शब्द  को  दो  भागों  में  तोड़  दिया  --- 'नाउ - हियर '   l  अब  वह  बच्चा  उस वाक्य  को  ऐसे  पढ़ता  था ---- ' गॉड  इज  नाउ  हियर  '  l      वह   बच्चा  दिन - भर ,  जब - तब   बोलता  रहता --- ' गॉड  इज  नाउ  हियर '  ---  गॉड  इज -----  --- ' l   ईश्वर  अब  यहीं  है  '  l 
  बच्चे  के  पास  कोई  तर्क  नहीं  था ,  कोई  बहस  नहीं ,  वह  तो  अपनी   तोतली  भाषा  में   बोलता  था   l
  बच्चे  के  मुँह  से  सुनते - सुनते   कि  ' गॉड  इज  नाउ  हियर '   ,   पिता  का  भी  विवेक  जाग  गया  l  अब  उसके  पास  कोई  तर्क  नहीं  था ,  कोई  विवाद  भी  नहीं   l   उसके  पास अनुभूति  थी  l   ईश्वर  को हम  इन  आँखों  से  देख  नहीं  सकते  ,  केवल  अनुभव कर  सकते  है  ,  उनकी  कृपा  से  आनंदित  हो  सकते  हैं  l  

15 January 2019

WISDOM ---- आशावादी सोच हो , सकारात्मकता अपनाई जाये तो फिर हमें कोई भी निराश नहीं कर सकता

  विश्वकवि  रवीन्द्रनाथ  टैगोर  की  बढ़ती  हुई  प्रतिभा  व  लोकप्रियता  से  लोग  ईर्ष्या  करने  लगे  l उन्होंने  गुरुदेव  की  छवि  को  धूमिल  करने  के  लिए   विभिन्न  पत्र - पत्रिकाओं  के  माध्यम  से   अपने  कलुषित  प्रयास  आरम्भ  कर  दिए   l  परन्तु   वे  समभाव    से  सब  सहन  करते  रहे  तथा  तनिक  भी  विचलित  नही  हुए   l  श्री  शरतचंद्र  को  जब  यह  आलोचना  सहन  नहीं  हुईं  तो  उन्होंने  गुरुदेव  से  कहा  कि  वे  इन  आलोचकों  को  रोकने  का  कुछ  प्रयास  करें  l  गुरुदेव  रवीन्द्रनाथ  टैगोर  ने  उन्हें  शांत  भाव  से  समझाया  ,  प्रयास  क्या  करूँ  ?  मैं उन  जैसा  नहीं  बन  सकता  व  उन्होंने   जो  मार्ग  अपनाया  है  ,  वह  भी मैं  नहीं  अपना  सकता   l 
  महाकवि  रवीन्द्रनाथ  ने  अपनी  रचनाओं   द्वारा   संसार  में  भारतीय  संस्कृति  का  मान  बढ़ाया  l  उन्होंने  विश्व  भ्रमण  किया  l  वे  जहाँ   भी   गए  उन्हें  बहुत  सम्मान  मिला  l   नोबेल  पुरस्कार  और  विश्व भ्रमण   आदि  से  उन्हें  जितना  भी  धन  मिला  उसे    शान्ति  निकेतन  की  स्थापना  में  लगाया  l

14 January 2019

WISDOM ---- ----- विभूति योग ---- श्रीमद्भगवद्गीता

ईश्वर  ने  मनुष्यों  को   अनेक  विभूति  सौंपी  है ,  आवश्यकता  है  उनको  विकसित  करने  की   l
  स्त्रियों  में  भगवान  की  सर्वाधिक  विभूतियाँ  हैं  ,  इन  विभूतियों  के  विकसित  होने  पर  ही  दुनिया  में  संतुलन  व  सौन्दर्य  प्रकट  होगा  l ----
  भगवान  कहते  हैं ----- स्त्रियों  में  मैं  कीर्ति  हूँ   l  कीर्ति  का  मतलब  ऐसी   नारी ,  जिसके  व्यक्तित्व  से  वासना  की  झंकार  नहीं  निकलती  l  ऐसा  होने  पर  उसे  एक  अनूठा  सौन्दर्य  उपलब्ध  होता  है   और  वही   सौन्दर्य  उसका  यश  है , उसकी    कीर्ति  है   l
  इसके  बाद   भगवान  कहते  हैं ---- स्त्रियों  की  श्री  मैं  ही  हूँ   l   श्री   स्त्री  का  आत्मिक  सौन्दर्य  है  ,  उसकी  दिव्यता  की  अभिव्यक्ति   l    श्री  का  सौन्दर्य  अलौकिक  है ,  अपार्थिव  है   l 
   इसके  बाद  स्त्रियों  के  एक   अन्य   गुण   ' वाक् '  को  भगवन  अपना  स्वरुप  बताते   हैं  l   जब  स्त्री  अपने  अस्तित्व  में परम  मौन  को  उपलब्ध  होती  है  तब  उसकी वाणी  ' वाक् ' बनती  है  , जिससे  मन्त्र  प्रकट  होते  हैं   l  यह  मौन  की   गरिमा  है   l
  वाक्  के  बाद   स्त्री  के  एक  अन्य  गुण  को  भगवन  अपना  स्वरुप  कहते  हैं   ,  वह  गुण  है ---- स्मृति   l
 स्त्री  के  लिए  स्मृति  उसकी  बुद्धि  का  हिस्सा  नहीं  है  ,  बल्कि  अस्तित्व  की सम्पूर्णता  है   l 
  इसके बाद  ' मेधा  '  को  भगवन   अपनी  विभूति  बताते   हैं   l  मेधा  के  बल  पर  ही   संवेदना  और  सृजन  को  स्त्री  धारण  करती  है   l 
  इसके  पश्चात्   धृति  को  भगवन  अपना  स्वरुप  बताते  हैं  l  धृति  का  अर्थ  है --- धीरज , धैर्य , स्थिरता  l  स्त्री  का  धैर्य ,  उसकी  सहने  की  क्षमता  अनंत  है  ,  इसलिए  प्रकृति  ने  उसे  माँ  का  गौरव  दिया  है  l 
  इसके  पश्चात्  स्त्री  का  अगला  गुण  है -- क्षमा ,  जिसे  भगवन  अपनी  विभूति  कहते  हैं   l  स्त्री  में  जितना  प्रेम  है ,  उतनी  ही  क्षमा  है   l 
  ये  सब  विभूतियाँ  जब  तक  विकसित  नहीं  होती  ,  तब  तक  दुनिया  असंतुलित  रहेगी   l   

13 January 2019

WISDOM ---- सकारात्मक सोच से मन प्रसन्न रहता है

 हर  स्थिति में  सुखी   रहना  या  दुःख  मनाना  व्यक्ति  पर  निर्भर  है   l  दुःख उन्हें  होता  है  , जो  हर  स्थिति  में  अपनी  मनमरजी  चलाना  चाहते  हैं  ,  हर  परिस्थिति  को  नियंत्रित  करना   चाहते  हैं   l 
 जो  परिस्थिति  के  साथ  अपनी  मन:स्थिति  बदल   लेते  हैं,  वे  ही  सुखी  रहते  हैं   l  जिसका    अपनी  मन: स्थिति  पर  नियंत्रण  होता  है   वह  कभी  किसी   परिस्थिति  का  प्रतिकार  नहीं  करता   और    उससे  उलझ  कर  अपनी  ऊर्जा  और  समय  भी   नहीं  गंवाता      l   अपने  मन  को  समझाकर  उस  परिस्थिति  का  समुचित  लाभ  भी  उठा  लेता  है   l   
  जो  हर  परिस्थिति  में  अपने  मन   की  सकारात्मकता  बनाये  रखते  हैं  उन्हें  कोई   दुःखी    नहीं  कर  सकता   l    एक  प्रसंग  है ----  एक  दिन  एक  शिष्य  ने   अपने   गुरु  से  कहा --- " गुरुदेव  !  एक  व्यक्ति  ने  आश्रम  के  लिए  गाय  भेंट  की  है  l  "  गुरु  ने  कहा --- " अच्छा  हुआ  !  दूध  पीने  को  मिलेगा  l  "
एक  सप्ताह  बाद   शिष्य  ने  आकर  फिर  गुरु  से  कहा --- " गुरूजी  !  जिस  व्यक्ति  ने  गाय  दी  थी  ,  वह  अपनी   गाय  वापस  ले  गया  l "
गुरु  ने कहा --- " अच्छा  हुआ  !  गोबर  उठाने  के  झंझट  से  मुक्ति  मिली  l  "
बदलती  परिस्थिति  के  साथ  सकारात्मकता  बनाये  रखना  ही  जीवन  में   सफलता  का  एकमात्र  सूत्र  है   l  

12 January 2019

WISDOM ----- विषाद और अवसाद से उबरकर कर्मपथ पर चलने के लिए गीता के ज्ञान की जरुरत है

 गीता  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाती  है    l  आज  के  युग  में    लोगों  में  तनाव , अवसाद और मनोरोग  बढ़  रहे  हैं  , इसका  कारण  दूषित  मानसिकता  है  l  लोग  अपने  सुख  से  सुखी  नहीं  हैं ,  दूसरे  का  सुख  देखकर  दुःखी   हैं  l  प्रत्येक  व्यक्ति  इसी  प्रयास  में  अपनी   ऊर्जा   गंवाता  है  कि  कैसे  किसी  को  अपमानित  करें , नीचा  दिखाएँ   l  आज मनुष्य  अपनी  तरक्की  के  प्रयास  कम  करता  है  ,  उसका  सारा  प्रयास   केवल  यही  होता  है कि   कैसे  अपने  प्रतिद्वंदी  को  आत्महीनता  की  स्थिति  में  धकेल  दें  और  उसकी  तुलना  में  स्वयं  को  श्रेष्ठ  साबित  करें  l  इस  वजह  से  संसार  में   तनाव ,  आत्महत्याएँ,  अपराध  तेजी  से  बढ़  रहे  हैं  l
 यह  एक  विडम्बना  है   कि   उजाला  हमारे  पास  है  और  हम  अँधेरे  में  भटक  रहे  हैं   l  ईर्ष्या , द्वेष ,  लोभ , लालच , वासना , षड्यंत्र  रचने  की  प्रवृति --- ये  सब  मानसिक  विकार  हैं   ,  इन  विकारों  से  ग्रस्त  व्यक्ति  एक  प्रकार  के   मनोरोगी  हैं   और  आज   की  परिस्थितियों  में   ऐसे  ही  मनोरोगियों  से   हमारा  सामना  होता  है  l  ऐसे  लोगों  के  बीच  रहकर   अपने  मन  को  कैसे   शांत  और  तनावमुक्त  रखा  जाये ,  यह  ज्ञान  गीता  से ही मिलता  है  l  गीता  को  धर्म  और  मजहब  के  दायरे   से  बाहर  रखकर   पढ़ा  और  समझा  जाना  चाहिए  l  इससे  हमारा  द्रष्टिकोण  ,  सोचने - विचारने  का  तरीका  परिष्कृत  होगा  तो  अधिकांश  समस्याएं   स्वत:  ही  समाप्त  हो  जाएँगी  l  

11 January 2019

WISDOM ----- जो स्वावलंबन और आत्मविश्वास के साथ बढ़ता है , उसकी योग्यता , कर्मठता , साहस और कर्तव्य भावना अदम्य होती है ---- लाल बहादुर शास्त्री

 शास्त्री  ने    कहा  था --- "  फूल  कहीं  भी  हो  खिलेगा  ही  l  बगीचे  में  हो  या  जंगल  में  ,  बिना  खिले  उसे  मुक्ति  नहीं  है  l  बगीचे  का  फूल पालतू  फूल   है  ,  उसकी  चिंता  स्वयं  उसे  नहीं  रहती  l    जंगल  का  फूल  इतना  चिंता मुक्त  नहीं  ,  उसे  अपना  पोषण  आप  जुटाना  पड़ता  है ,  अपना  निखर  आप  करना  पड़ता  है  l  कहते  हैं  कि  इसीलिए  वह  खिलता  भी  मंद  गति  से  है   l  सौरभ  भी  धीरे - धीरे  बिखेरता  है  l  किन्तु  उसकी  सुगंध  बड़ी  तीखी  होती  है  l  काफी  दूर  तक  वह  अपनी  मंजिल   तय    करती  है  l
  यही  बात    मनुष्य  के  विकास  में  भी  लागू  है  l  सफलता  की  मंजिल  भले  ही  देर  से  मिले  ,  पर अपने  पैरों  की  गई  विकास  यात्रा    अधिक  विश्वस्त  होती  है  l   अपने  आप  बढ़ने  में  सच्चाई  और  ईमानदारी  रहती  है  l   संसार  में  कार्य  करने  के  लिए  स्वयं  का  विश्वासपात्र  बनना  आवश्यक  है   l  आत्मशक्तियों  पर  जो   जितना  अधिक  विश्वास  करता  है  ,  वह  उतना  ही  सफल   होता  है   l 
    

10 January 2019

WISDOM ----- कठिनाइयाँ और विपरीत परिस्थितियां उपलब्धि तभी बनती है जब हम उन परिस्थितियों में मनोबल बनाये रखते हैं , हिम्मत नहीं हारते हैं

   अनुकूल परिस्थितियों  में  सुख  और  यश  की  ललक  इतनी  प्रबल  होती  है   कि  उन्हें  प्राप्त  करने  में  ही  पूरी  उर्जा  चली  जाती  है  l   विपरीत परिस्थितियां  हमें  सजग ,  सतर्क  और  सावधान  बनाती  हैं   l   अपने - पराये  का  परिचय  इसी  अवस्था  में  होता  है  l जिन्हें  हम  अपना  मान  के  जान  छिडकते  हैं ,  वे  कितने अपने  हैं  , इसी  दौरान  इसकी  परीक्षा  हो  जाती  है  l  विपरीत परिस्थितियां  हमें  वास्तविकता  का  बोध  कराती  हैं  l 
बुद्धिमान  व  समझदार  व्यक्ति   ऐसे  समय  में  हिम्मत  और  हौसला  नहीं  हारते  ,  चुनौती  समझकर  उनका  सामना  करते  हैं   और  जीवन  में  सफल  होते  हैं   l   भगवन  राम  यदि  अयोध्या  में  ही  रहते , चौदह  वर्ष  का  वनवास   संपन्न  नहीं  करते  तो  असुरों  का  नाश  कैसे  होता  l  इस  अवधि  के  संघर्ष  ने  ही  उन्हें  मर्यादा  पुरुषोतम  राम  बनाया  l 
  इसी  तरह  पांडवों  को  बारह  वर्ष  के  वनवास  और  एक  वर्ष  के  अज्ञातवास  में  अनेक  कठिनाइयों  का  सामना  करना  पड़ा  l  इसी  अवधि  में  अर्जुन  को अनेक  दिव्यास्त्र  प्राप्त  हुए  l  बलशाली  भीम  जो  गदा  युद्ध में  दक्ष  थे  उन्हें  नौकर  बनकर  खाना बनाना  पड़ा  l  सम्राट  युधिष्ठिर  को  दास  बनना  पड़ा ,  अर्जुन  को  एक  वर्ष  तक  ब्रह्न्न्ला  का  जीवन  बिताना  पड़ा  l  वे  इन  सब  से  हारे - घबराये  नहीं   और  भावी  महाभारत  युद्ध  और  राज्य  सम्हालने  की  तैयारी  कर  ली   l 
  यदि  हम  में  साहस ,  धैर्य  और  दूरदर्शिता  हो  तो  कठिनाइयाँ  हमें  बहुमूल्य  उपलव्धियों  और  वरदानो  से  भर  सकती  हैं   l   

9 January 2019

WISDOM ------- चिंता छोड़कर चिंतन - मनन करें

 तरह - तरह   की  चिंताएं  नींद  को  सबसे  ज्यादा प्रभावित  करती  हैं  l   कई  लोगों  की यह  समस्या  है  कि  जैसे ही  वे  सोने  के  लिए  जाते हैं  ,  उन्हें  अपने  अधूरे  और   रुके  हुए  कामों  की  फ़िक्र  होने  लगती  है   और  उनकी  नींद  उड़ जाती  है  l  कई  देश  विकसित  हैं , समृद्ध  हैं   लेकिन  वहां  नींद  की  समस्या  बहुत ज्यादा  है   l  सब  सुख - सुविधाएँ  हैं   फिर  किस बात  की  चिंता   ?
   यदि  हम  जीवन  में  चिंतामुक्त  होना ,  निर्विचार  होना   सीख  जायेंगे  तो  नींद  की  समस्याओं  से  आसानी  से  मुक्ति  मिल  जाएगी  l  
    हम  अपने  मन   में  सदा  सकारात्मक  सोच  रखें  ,  इसके  लिए  ईश्वर  विश्वास  जरुरी  है  l  
हमारे   जीवन  के  जितने  भी  कार्य  हैं ,  जो  भी  जिम्मेदारी  है  वह  हमें  ही  निभानी  है   लेकिन  इसका  अहंकार  न  करें  l  स्वयं  से  जितना  संभव  हो   ,  समर्पण  भाव  से  कार्य  करें   और  मन  में  यह   प्रार्थना करें  कि  हे  ईश्वर !  हम  से  जितना  हो  सकता   था ,  हमने  प्रयास  कर  लिए  ,  अब  सब  कुछ  आपके  सहारे  है ,  आपकी  शरण  में  है ,  अच्छा  हो  या  बुरा --- ईश्वर  की  इच्छा  l '  शरणागत  भाव  से  चिंता  दूर  हो  जाती  है   l    ईश्वर  के  जिस भी  रूप  को मानते  हैं  उनका  स्मरण  करते  हुए   सोने  से  पहले  सद्बुद्धि  की  प्रार्थना  करें   तो  सुख - चैन  की नींद  आएगी   l  

8 January 2019

WISDOM --- परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों , हम स्वयं पर नियंत्रण न खोएं

हमारे   धर्म  ग्रन्थ  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  l  श्रीरामचरितमानस  में    प्रसंग  है  --- महारानी  कैकेयी  ने  राजा  दशरथ  से  दो  वर  मांगे ---- राम  को  वनवास  और  भारत  को  राजगद्दी  l    तुलसीदासजी  कहते  हैं   कि  उन  दिनों  अयोध्या  में  सब  तरफ  भरत  और  कैकेयी  का  अपयश  फैला  था  l  भरत  को  कलंक  मिला ,  लोक निंदा  मिली   l  उसी  समय  पिता दशरथ  का  स्वर्गवास  हो  गया  था   l  परिस्थितियां  प्रतिकूल  थी   l  उस  अपयश  के   बीच  में  स्थिर  रहना  ,  अपने  क्रोध  पर  ,  क्षोभ  पर   नियंत्रण  बनाये  रखना    बड़ा  कठिन  था   l लेकिन  भरत  ने  आत्म नियंत्रण  नहीं  खोया   ,  न  ही  किसी  से  बैर  निभाने  की  सोची  l   ऐसी  परिस्थिति में  शांत  रहे  l 
    भरतजी  जब  राम  को  मनाने  चित्रकूट  जा  रहे  थे   तो   कोल - भीलों    ने  श्रीराम  को  खबर  दी  --- महाराज  !  ऐसा  लगता  है  कि  कोई  बड़ी  सेना  इधर  बढ़ती  चली   l  लोग  कहते  हैं   कि  अयोध्या  की   सेना  है   l  लक्ष्मण   युद्ध     की  तैयारी    करने  लगे   l  भरत   को   यह    सूचना   मिली  कि  लक्ष्मणजी  धनुष  बाण  लेकर  उन्हें   मारने  आ  रहे  हैं  ,  तब  भी  वे  विचलित  नहीं     हुए  , उनका  विवेक   डिगा  नहीं  l
  भरतजी  में   लालच , अहंकार  नहीं  था  l  राजगद्दी  उन्हें  मिल  रही  थी   ,  उनका  अपनी  कामनाओं  पर  नियंत्रण  था   l  l   उनका  चरित्र  प्रेरणादायक  है   l  

7 January 2019

WISDOM ---- भौतिक उपलब्धियों के साथ भावनात्मक पोषण भी आवश्यक है

 वर्तमान  युग  में   भौतिक  सुख  सुविधाओं  की  कोई  कमी  नहीं  है   लेकिन  फिर  भी  संसार  में  मनोरोगी  बढ़ते  जा  रहे  हैं  l  इसका  कारण  है --- सहयोग , सेवा , अपनापन  , भावना , संवेदना  की  कमी  l   आज  हम  सुविधा - साधनों  के  शिखर  पर  पहुंचकर  भी  आंतरिक  दरिद्रता  से  ग्रस्त  हैं  l  इस  कारण     जीवन  में  हताशा - निराशा  आ  जाती  है  l  लोग  अपना  बहुमूल्य  जीवन  तक  गँवा  देते  हैं  l
    पहले  लोग  साधन - सुविधाओं  से  रहित  रेगिस्तान  में  भी  प्रेम पूर्वक  रह  लेते  थे   l  इसकी  वजह  थी  -- उनकी  आंतरिक  सम्पदा  l  परस्पर  सहयोग , अपनापन    होने  से  लोग  परेशानियों  में  भी  सुकून  से  रहते  थे   l    पहले  लोगों  के  ह्रदय  में  छल - कपट  नहीं  था  ,  लेकिन  आज   लालच  , प्रतियोगिता  ,  ईर्ष्या - द्वेष  ने    इन  गुणों  को  छीन  लिया  है   इस  कारण  सारे  सुखों  के  बीच  भी  व्यक्ति   अन्दर  से  खोखला  है   l   

6 January 2019

WISDOM ----- अपने तनाव के लिए व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार है

    कामना , वासना  और  तृष्णा  की खाई  इतनी गहरी  है  ,  जिसे  बड़े - बड़े  राजा - महाराजा  भी  नहीं  पाट  सके  l   मनुष्य  को  संतोष  नहीं  है  l  अपनी  इन्ही  कमजोरियों  के  कारण  लोग  इधर  से  उधर  भागते  रहते  हैं   ,  सुख - शान्ति  तो  मिल  नहीं  पाती  ,  तनाव   से  और  घिर  जाते  हैं  l   एक  छोटा  सा प्रसंग  है ----
 प्रख्यात  पत्रकार ,  लेखक  एवं  विचारक  पाल   ब्रंटन  भारत  आये   l  उन  दिनों  वे  वाराणसी  में  थे  ,  वहीँ  की  घटना  है   जिसका  उन्होंने  उल्लेख  किया ----- एक  दिन   वे    गंगा  तट  पर  बैठे  हुए  थे   l  उन्होंने  देखा  ,  एक  व्यक्ति  बड़ी  तेजी  से  गंगा जी  की  ओर  भागा  गया   और  फिर  हताश  होकर  वापस  लौट  आया  l 
      अपनी  जिज्ञासा  को  शांत  करने  के  लिए    पाल  ब्रंटन  उस  व्यक्ति  के  पास  गए   और  उससे  पूछा  ---- " वह  गंगा  तट  के  पास भागा  हुआ  क्यों  गया   और  फिर  वापस  हताश  होकर  क्यों  लौटा  ? "
  इस  पर  उस  व्यक्ति  ने    थोडा  शरम  और  संकोच  के  साथ  कहा --- " मैं  गंगा  तट  के  नजदीक  एक   स्त्री  के  सौन्दर्य  से  अभिभूत हो  गया  था  l  मैंने  सोचा  था  कि  कोई  सुन्दर  स्त्री  गंगा  में  स्नान  कर  रही  है  l  मुझे  उसके  खुले  केश  बहुत  सुन्दर  लगे  l '
इस पर  पाल ब्रंटन  ने  पूछा --- " तब  फिर  वापस  क्यों  भाग  कर  आये  ?  "
इस  पर  उसने  बताया -- " दरअसल  मुझे  धोखा  हुआ  था  l  दूर  के  कारण  मैं  सही  से  नहीं  देख  सका  l  पास जाने  पर  पता  चला  कि   वहां  कोई  स्त्री  ही  नहीं  है  l  वहां  तो  एक  साधु  महाराज  बाल  खोले  नहा  रहे  हैं  l  मुझे  तो  बस  बालों  को  देखकर  भ्रम  हुआ  था  l " 
पाल  ब्रंटन  ने  यह  बात  पं. गोपीनाथ  कविराज  को  बताई  l   उन्होंने  बताया  --'- व्यक्ति  को  भगाने   वाली  व  दौड़ाने  वाली   उसकी  स्वयं  की  वासना  थी  l  साधु  को  तो  इस  बात  का पता  भी  नहीं  कि  वह  व्यक्ति  क्यों   इधर  से  उधर भाग  रहा  है  l   गंगा  तट   पर  जाते  समय  वह  खुश  था , उसे  सुख  की  अनुभूति  थी  ,  लेकिन  पास पहुँचने  पर  निराशा  से  भर  गया   और  वापस  आते  समय  दुःख व  निराशा  से  भर  गया  l
मनुष्य  इसी  तरह  अपनी कमजोरियों  के  कारण  भटकता  रहता  है  l  " 

5 January 2019

WISDOM ---- सच्चाई और ईमानदारी के साथ जागरूकता भी जरुरी है

   सच्चे  और  ईमानदार  व्यक्तियों  को   यदि  दीन - हीन  देखा  जाता  है   तो  उसके  पीछे  एक  कारण  यह  भी  है  कि  वे  संगठित    नहीं  है  और  उनमे  जागरूकता   की ,    विवेक  की  कमी  है   इस कारण  उनका  लाभ   बुरे  लोग  उठा  लेते  हैं  l  बुरे  व्यक्ति   उनका    लाभ  उठाते  हैं ,  शोषण  करते  हैं  l  यदि  ऐसा  सच्चा  व्यक्ति  कभी  किसी मुसीबत  में  फंस  जाये  तो  कभी  उसकी  मदद नहीं  करते  ,  बल्कि अपना  स्वार्थ  सिद्ध  हो  जाने  के  बाद  धक्का  और  दे देते  हैं  l   इसलिए  हमें  जागरूक  होना  होगा  कि  कहीं  हमारा  लाभ  गलत  व्यक्ति  तो  नहीं  उठा  रहे  l
   इस  कटु  सत्य  को  बताने वाली  घटनाओं  से  हमारा  इतिहास भरा पड़ा है  l   इतिहास  इस  बात  का साक्षी  है   कि  राजपूत  राजा   चरित्र , वीरता , साहस ,  शौर्य   और  आन - बान  में  मुगलों  से  हजार  गुना  अच्छे  थे  l  उनकी  वीरता , कर्तव्य परायणता   और  जाँबाजी  के  किस्सों से  इतिहास के  पृष्ठ   रंगे  पड़े  हैं    किन्तु यही  सब  कुछ  नहीं  होता  l  उसके  सदुपयोग  और  एकता  की  भावना  का  उनमे  सर्वथा  अभाव  था  l 
     राजपूतों  के  ' शौर्य '  और  ' मर  मिटना '   ये  सब  बातें  उनके  अहंकार  को  बढ़ाने  वाली  थीं  l  उनके  इस मिथ्याभिमान  और  अविवेक  का  लाभ  मुगलों  ने  उठाया  था  l   मुग़ल  राज्य  की  नीवें  इन्ही  राजपूत  राजाओं  के  बल  पर  खड़ी  रहीं  थी  l  राजपूत  राजाओं   से  मुगलों  ने  दोस्ती  की  थी    और  इस  दोस्ती के  लिए   राजपूत  राजा    ,  मुग़ल  सम्राट  के  कहने  पर   विभिन्न  क्षेत्रों  में  युद्ध  के  लिए  जाते  थे ,  अपनों  से  ही  युद्ध  करते  थे  l    इससे  राजपूत  राजाओं  का  गौरव कम  हुआ  और  पराधीनता का कलंक   भी  भारत भूमि  को  धोना  पड़ा  l   केवल  महाराणा  प्रताप , राणा  हम्मीर  और  महाराणा  राजसिंह  ने    देश  के  गौरव  को बनाये  रखा   l 
   उस  काल  के  अधिकांश  हिन्दू  राजाओं  की  सत्ता  ,  सामर्थ्य ,  बल ,  पौरुष   व सैन्य  शक्ति   या  तो  आपस  में  लड़ने - झगड़ने   और  मिथ्या  मान - अपमान  में  उलझकर    परस्पर  ईर्ष्या - द्वेष   उपजाने  में  ही  खर्च  होती रही    और  उसका  लाभ  दूसरे  लोगों  द्वारा  उठाया  जाता  रहा   l   

4 January 2019

WISDOM ------ मनुष्य बनें

 मदारी  के  हाथ  ,  बन्दर  को  वस्त्र - आभूषण  से  सजा  देते  हैं  इससे  वह  मनुष्य    नहीं  हो  जाता  l
' हड्डी , खून , मांस , विष्ठा    का   ढेर   मनुष्य   नहीं  हो  सकता ,   मनुष्य  वह  है   जिसके  ह्रदय  में  संवेदना  हो  जो  मनवता  की  कराहटें  सुनकर   बेचैन  हो  जाये   l 
  द्वितीय  विश्वयुद्ध  में   स्क्वाड्रन  लीडर  चार्ल्स  ग्रोव   मन  ही  मन  विचार  कर  रहा  था  कि  27 जुलाई  1945  की  यह  तारीख  कितनी  भाग्यशाली  है  जिसने  उसे  'ओकीनावा '  को  ध्वस्त  करने  का   श्रेय   दिया  l'  शत्रु - जल  रहा  था  l'  सफल  आक्रमण  के  लिए   द्वितीय  विश्वयुद्ध  की  सेनाओं  के  कमांडर  इन  चीफ  जनरल  ने  स्वयं  बधाई  सन्देश  भेजा  l 
  चार्ल्स  ग्रोव  ने   दुश्मन  की    चौकी  को  देखने  की  अनुमति  मांगी   ,  उसे  जीप  से  जाने  की  अनुमति  मिल  गई  l
  मार्ग  में  ही  दारुण  चीत्कारों ,  जले  हुए  मांस  की दुर्गन्ध  से  उसका  दम  घुटने  लगा  ----- ओह !  मानवता की  रक्षा     के  नाम  पर  उसने  जीते - जागते  मनुष्यों  को   भून  दिया  l   जीप  से  उतरा  वह  --- छोटे - छोटे  बच्चों  के   शव  को  देखकर  उसने  आँखें  बंद  कर लीं  l   कुछ  स्त्रियाँ  चीखती - चिल्लाती  उसकी  और  दौड़ी  आ  रहीं  थी    l  उनके  सिर के  बल  जल  गए  थे  ,  सारा  शरीर  काला  और  जगह - जगह  से  फट  गया  था  l   ग्रोव  को  चक्कर  आने  लगा  ,  उसके  भीतर  से  कोई  चिल्ला  रहा  था  --- " ये  अबोध  बच्चे ,  ये  सुकुमारी  युवतियां  ,  ये  सब  तुम्हारे  शत्रु  हैं  ,  तुमने  इन्हें  जला  दिया  ,  पिशाच  कहीं  के  ----
  पिशाच----  क्या  तुम  अभी  अपने  को  मनुष्य  समझते  हो --- ये  शब्द  उसकी  अंतरात्मा  में  गूंज  रहे  थे  ,  उसका  मानसिक  संतुलन  भंग  हो  गया  l  स्वदेश  लौट  आया  l  किसी  सुन्दर  शिशु ,  पुरुष , युवती  को  देखकर  ऑंखें  बंद  कर  लेता ,  उसके  हाथ - पैर  कांपने  लगते  ,  कभी  बडबडाता --- भागो -- भागो  पिशाच  आ  रहे  हैं  ,  अपने  बमों  से  संसार  को  भून  देंगे  l " 
तीन  महीने  तक  उसका  इलाज  चला  ,  स्वस्थ  हुआ  l  अब  उसे  एक  ही  धुन  थी  --- वह  मनुष्य  बनेगा  l  दो  पांवों  पर  चलने  वाला  जानवर  नहीं  l  दो  पांवों  पर  तो  वनमानुष  भी  चलता  है  l  वह  मनुष्य  बनेगा    जो  मानवता  की  कराहटें  सुन  कर  बेचैन  हो  जाये  और  मानवता  की  सेवा  के  लिए  अपना  सर्वस्व  दे  डालने  के  लिए  विकल  हो  जाये  l  
स्क्वाड्रन  लीडर  चार्ल्स  ग्रोव    अफ्रीका  के  जूलू  निवासियों  का  फादर  ग्रोव   हो  गया   l  वहां    उसने  द्वितीय  विश्वयुद्ध  के  अनुभवों  को  '  आहत  मानवता  की  कराहटों'   के  नाम    से  संजोया   l  

3 January 2019

WISDOM ----- शक्ति का उपयोग लोक - कल्याण के लिए हो

भगवन  राम  के  पास  अतुलनीय  शक्ति  थी ,  उन्होंने  इस  शक्ति  का  प्रयोग  लोक - कल्याण  के  लिए   किया    l  अनीति  और  अत्याचार  को  समाप्त  कर  नीति  की  स्थापना  के  लिए  किया  l   लेकिन  रावण  ने  अपनी  शक्ति  का  का  प्रयोग  अहंकार  के  प्रदर्शन  और  मर्यादा  को  छिन्न - भिन्न  करने  के  लिए  किया  l 
  भगवान  राम  और  रावण  दोनों  ने  ही  युद्ध  से  पूर्व  शक्ति  की  साधना  की   थी  l  देवी   पुराण  में  उल्लेख  है   कि  राम  और  रावण  दोनों  के  ही  सामने  शक्ति  प्रकट  हुईं  थीं   l  भगवान  राम  को  उन्होंने  ' विजयी  भव  '  का  आशीर्वाद  दिया   और  कहा  कि  तुम्हारी  जीत  हो ,  तुम  विजयी  हो  l 
वहीँ  दूसरी  और  शक्ति  के  महा उपासक  रावण  को  ' कल्याणमस्तु  '  का  वरदान  दिया  l  उन्होंने  रावण  से  कहा  कि  तुम्हारा  कल्याण  हो  l  रावण  का  कल्याण  उसके  अहंकार  और  असुरत्व  के  साथ  मिट  जाने  में  ही  था  l   आतंक  के  प्रतीक  रावण  के  मिट  जाने   से  ही  सुख  शान्ति  का  साम्राज्य  स्थापित  हुआ  l 
   आज  लोग  भगवान  राम  की  पूजा  तो   करते  हैं   लेकिन  रावण  रूपी  आसुरी  तत्व    उनके  भीतर  जिन्दा  है   इसी  कारण  समाज  में  मानवीय मर्यादाओं  का  उल्लंघन  और  राक्षसी  प्रवृतियां  देखने  को  मिलती  हैं  l  लोगों   के  मन  में  छुपे  इस  आसुरी  तत्व  के  मिटने  पर  ही  सुख - शांति  संभव  है  l 
  जब  स्थिति  विकट    हो  जाये   और  कोई  उपाय काम  न  आये   तब  एक  ही  उपाय है    -- ईश्वर  से  सद्बुद्धि  की  प्रार्थना  की  जाये ,  ईश्वर  की   कृपा  से  ही  मन  में  छुपे  इस  रावण  को  मिटाया  जा  सकता  है   l   

2 January 2019

WISDOM ---- सच्ची सेवा उपदेशों से नहीं , आचरण से होती है

  एक  बार  भगवान  बुद्ध  ने  अपने  शिष्यों  को  गाँवों  में    सेवा  कार्य  करने   भेजा     l   भिक्षुक  गांवों  में  जाकर  लोगों  को  तथागत  की  वाणी  और  ध्यान  आदि  का  उपदेश  देने  लगे  l  ग्रामीणों  ने  उनकी  कुछ  नहीं  सुनी   और  मान - सम्मान  भी  नहीं  दिया  l भिक्षुक  निराश - हताश  होकर  लौट  आये  l  भगवान  बुद्ध  ने  उनकी  बातों  को  ध्यान  से  सुना ,  फिर  उठे  और  गाँव  की  ओर  चल  पड़े  l  उनके  पीछे  अनेक  शिष्य  भी  चले  l 
 भगवान  बुद्ध  गाँव  पहुँचने  के  बाद  वहां  की  सफाई  करने  लगे ,  अपने  हाथों  से  झाड़ू  लगाईं , कूड़ा  उठाया  l इसके  बाद  अपने  शिष्यों  के  सहयोग  से खाना  बनाया   और  सभी  गाँव  के  लोगों  को  बुलाकर  प्यार  से खाना  खिलाया  l  गाँव  वालों  का  सुख - दुःख पूछा ,  आपका  घर  तो  सुरक्षित  है  ?  भोजन  आदि  तो  ठीक  मिलता  है  ?  आप  लोगों  की  कोई  भी  समस्या  है  तो  निस्संकोच  हमारे  सामने  रखें   l  गाँव  वाले  उत्साह पूर्वक  अपनी - अपनी  समस्या  प्रकट  करने  लगे ,  कुछ  लोगों  ने  अनुरोध  कर    एकांत  में  भगवान  बुद्ध  से  अपनी समस्या  का  समाधान  पाया  l चारों  और  दिव्य  और  स्वर्गीय  वातावरण  बन  गया  था   l    भिक्षुक  आश्चर्य  करने  लगे  कि  ऐसा  कैसे  हुआ   ?
 भगवान  बुद्ध  बोले ---- " वत्स  !  सेवा  का  अर्थ   उपदेश  देना  नहीं ,  वरन  लोगों  को   उनके  कष्टों  से मुक्ति  दिलाना  है  l    जिसको   भूख  लगी  है  , वह  भला  भोजन  के  अलावा  और  क्या  सोच  सकता  है  ?  जिसके  सिर  पर  छत  नहीं  है  , जीवन  में  अनेकों  समस्याएं   हैं  ,   वह  कैसे  ध्यान  और   अध्यात्म    की  बात  समझ सकता  है   l    उनके  कष्टों  का  समाधान  करना  ही  उन्हें  ध्यान  की  ओर  ले  जायेगा   l  
भिक्षुओं   ने  अपनी  त्रुटी  समझी   कि उन्होंने  केवल  बातें  कहीं , उपदेश  दिया    लेकिन  भगवान  बुद्ध  ने    उन  बातों  को  जीवन  में  उतारकर  कर्म  के  माध्यम  से   अभिव्यक्त  किया   l   

1 January 2019

WISDOM------ नए वर्ष में पुरानी बुरी आदतों को छोड़ना होगा

कहते  हैं  पुरानी  आदतें  आसानी  से  नहीं  छूटती  हैं  l  हमारी  सबसे  बुरी  आदत  है  --- गुलामी  की  l   राजनीतिक  द्रष्टि  ने  हम  भले  ही  आजाद  हो  गए  लेकिन  अभी  भी  भावनात्मक  द्रष्टि  से  बौद्धिक  द्रष्टि  से  गुलाम  हैं  l  गुलामी  की  आदत  इतनी  पक्की  हो  चुकी  है  कि  किसी  न  किसी की  गुलामी  के  बिना  जिन्दा  नहीं  रह  सकते   l   गुलामी  का  सबसे  बड़ा  कारण  है  --- अज्ञान  l  लोग  सभी  सुख - वैभव    बहुत जल्दी  और  बिना  परिश्रम  के  चाहते  हैं  इसके  लिए  अधिकारियों  की  गुलामी  करते  हैं  l
  अपने  आचरण  को  सुधारे  बिना  ,  अपनी  दुष्प्रवृतियो  को  त्यागे  बिना   ईश्वर  की  कृपा  पाने  के  लिए  अनेक  कर्मकांड,    बाह्य  आडम्बर   करते  हैं  l  सबसे  बढ़कर  मनुष्य  अपने  मन  के  विकारों का --- कामना , वासना ,  तृष्णा  का  गुलाम  है  l  इन  दुष्प्रवृतियों  के  कारण  लोग  स्वयं   तनाव    में  रहते  हैं   और  इन्ही  बुराइयों  के  कारण     समाज  में  अपराध  होते  हैं   l