समय परिवर्तनशील है लेकिन मनुष्य की मानसिक प्रवृत्तियां ---लोभ , लालच , महत्वाकांक्षा , कामना------ आदि इनमें परिवर्तन नहीं होता l एक समय था जब ब्रिटेन का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था , अनेक देश गुलाम थे l साम्राज्यवादी नीति की आलोचना हुई , धीरे -धीरे सब देश आजाद हो गए l लेकिन स्वयं को श्रेष्ठ समझने का अहंकार और गुलाम बनाने की प्रवृत्ति नहीं गई , वैज्ञानिक प्रगति के साथ उसका रूप बदल गया l अब किसी देश को गुलाम नहीं बनाना है , उसके विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि , शिक्षा , चिकित्सा , मनोरंजन आदि पर कब्ज़ा कर के उसकी पहचान को मिटाना है जैसे जो विश्व के अग्रणी देश हैं वे समझते हैं कि उनके बीज , उनकी खाद , उनकी , शिक्षा , चिकित्सा आदि सर्वश्रेष्ठ है तो पूरी दुनिया उनको माने अपने पुरातन काल से चले आ रहे तरीकों को छोड़ दे l जब देशी तरीके से , देशी बीजों से कृषि उत्पादन होता था तब मटर , टमाटर , गोभी आदि कच्चा भी खा लो तो फायदा होता था लेकिन अब ! उसमे ऐसी रासायनिक खाद , कीटनाशक आदि हैं कि कच्चा खा ले तो बीमार हो जाये l पका कर भी खाओ तब भी उनके रसायन शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं l इसी तरह चिकित्सा --आयुर्वेदिक दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता लेकिन ऐलोपथिक दवा के साइड इफेक्ट होते हैं , एक बार व्यक्ति बीमार हो जाये तो कभी भी पूर्ण स्वस्थ नहीं होता , एक बीमारी ठीक हुई तो उसके बाद दूसरी , फिर तीसरी बीमारी झेलते हुए ही व्यक्ति चला जाता है l इसी तरह हर क्षेत्र में अपनी पहचान खोने से संस्कृति पर संकट आ जाता है l जब जागरूकता होगी तभी समय फिर बदलेगा l
30 September 2022
WISDOM -----
आज हम संसार में देखते हैं कि अमीर बनने की होड़ है l और संपत्ति में से दान करने की भी होड़ सी है l लेकिन इतने अधिक दान -पुण्य के बावजूद भी संसार में सुख -शांति नहीं है , बड़े युद्धों का खतरा है , लोग तनाव में हैं, दंगे , फसाद , गोलीकांड , आत्महत्या , भ्रष्टाचार , छल -कपट , षड्यंत्र , धोखा सामान्य बात हो गई है l जितने बड़े अस्पताल हैं , चिकित्सा की सुविधाएँ हैं उतनी ही बड़ी बीमारियाँ हैं l सामान्य मृत्यु कम है , बीमारी से मरने वालों की संख्या बहुत है l हमारे प्राचीन ऋषियों का और आचार्य का कहना है कि धन कैसे तरीकों से कमाया जाता है और उसको दान करने के पीछे भावना क्या है ? उसका प्रभाव जन -मानस पर पड़ता है l भगवान बुद्ध ने कहा है -- पात्र -कुपात्र का विचार किए बिना सम्पदा को लुटा -फेंकने का नाम दान नहीं है l यश बटोरने के लिए , अपने अहम् की पूर्ति के लिए दान करने के सत्परिणाम कम और दुष्परिणाम अधिक देखने को मिलते हैं l ' कहते हैं कलियुग का निवास स्वर्ण अर्थात धन -सम्पदा में होता है l महाराज परीक्षित ने स्वर्ण मुकुट पहना था तो उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी , यह बात आज भी उतनी ही सत्य है , आज दान के पीछे अपने स्वार्थ है , व्यक्ति एक हाथ से दान करता है तो दूसरे हाथ से उससे डबल कमाई का रास्ता खोज लेता है l यदि लोक -कल्याण का भाव होता तो युद्ध न होते , भूमि , जल , मिटटी , कृषि आदि प्रदूषित न होती , संसार में कितने ही गरीब देश हैं जहाँ भुखमरी है , वहां खुशहाली होती l कहते हैं यदि धन पवित्र साधनों से कमाया जाये और उसका सदुपयोग हो तो वह संसार में खुशहाली लाता है लेकिन यदि धन सत्ता पर चढ़ बैठे तो वही होता है जो आज हम संसार में देख रहे हैं l प्राकृतिक आपदाओं , बीमारी , महामारी आदि के माध्यम से ईश्वर हमें संकेत देते हैं l आज संसार को सद्बुद्धि की जरुरत है , इसके लिए सब प्रार्थना करें l
29 September 2022
WISDOM -----
एक व्यक्ति एक संत के पास अपनी जिज्ञासा लेकर पहुंचा और बोला ---- " महाराज ! मैं विवाह करना चाहता हूँ l मैंने अनेक युवतियों को देख भी लिया है , परन्तु अभी तक मुझे कोई सबसे योग्य युवती नहीं मिली l " संत बोले ---- " बेटा ! तुम पहले फूलों के बगीचे में सबसे सुन्दर गुलाब का फूल तोड़कर लाओ , लेकिन शर्त यह है कि एक बार आगे बढ़ने के बाद पीछे नहीं मुड़ना l " थोड़ी देर बाद व्यक्ति खाली हाथ लौटा l संत ने पूछा --- " बेटा ! तुम्हे कोई सुन्दर फूल नहीं मिला ? " वह व्यक्ति बोला --- " महाराज ! मैं अच्छे -से -अच्छे फूल की चाहत में आगे बढ़ता गया l मार्ग में अनेक सुन्दर फूल दिखे , परन्तु मैं इस चाहत में आगे बढ़ता गया कि आगे और भी सुन्दर फूल होंगे l दुर्भाग्यवश अंत में फिर मुरझाये फूल मिले l " संत बोले ---- " बेटा ! जीवन भी इसी प्रकार है l सबसे योग्य की तलाश में भटकते रहोगे तो जो संभव है , उससे भी हाथ धो बैठोगे l इसलिए जो प्राप्त हो सकता है , उसी में संतोष करने की वृत्ति पैदा करो --- यही संभव समाधान है l "
28 September 2022
WISDOM -----
लघु -कथा ---- राजा अग्निमित्र और श्रेष्ठी सोमपाल मित्र थे l उनमे बहस हो गई l सोमपाल ने कहा राज्य का संरक्षण उपयोगी तो है , पर अनिवार्य नहीं l ईश्वर प्रदत्त विभूतियों और साधनों से मनुष्य बहुत मजे में रह सकता है l राजा को क्रोध आ गया और उन्होंने चुनौती दी --" अच्छा एक वर्ष नगर में मत घुसना , जंगल की सीमा में रहना l अन्दर आए तो जेल में डाल दूंगा l हार मान लो तो प्रतिबन्ध हटा दूंगा और यदि एक वर्ष में कुछ उल्लेखनीय कर के दिखा दोगे तो मैं हार मान लूँगा l " सोमपाल सिमित साधन लेकर जंगल में प्रवेश कर गए l वहां एक निराश लकड़हारा मिला l श्रम बहुत करने पर भी परिवार का पोषण ठीक से न कर पाने के कारण दुखी था l सोमपाल ने उसे उत्साहित किया और कहा , मित्र , मैं तुम्हारी मदद करूँगा , दोनों मिलकर बड़ा काम करेंगे l लकड़हारा राजी हो गया l सोमपाल ने उससे कुल्हाड़ी ले ली और स्वयं लकड़ी काटने लगे और उसे नगर के समाचार लेने भेज दिया l प्राप्त सूचनाओं के आधार पर वे उसके द्वारा जलाऊ और इमारती लकड़ी बेचने लगे l धीरे -धीरे काम बढ़ निकला , अधिक मजदूर लगाकर अधिक काम होने लगा l नगर वासी भी उससे लाभान्वित होने लगे l तभी पता चला नगर में विशाल यज्ञ होने वाला है l सोमपाल ने यज्ञ के लिए समिधाओं तथा सुगन्धित वनौषधियों का संग्रह कर लिया l यज्ञ संयोजकों को सूचना मिली तो अच्छे मूल्य पर तैयार वस्तुएं खरीद ली गईं l इस प्रकार नगर की ढेरों आवश्यकताएं सोमपाल के तंत्र से पूरी होने लगी l जब राजा को सुचना मिली तो खोजा गया कि इस तंत्र के पीछे कौन है l तब राजा स्वयं अपने मित्र सोमपाल से मिलने गए , प्रेम से मिले और पूछा --' तुम तो शहर में घुसे नहीं , यह सब कैसे विकसित किया ? ' सोमपाल बोले --- " मित्र , यह मेरी विचार शक्ति और लकड़हारे की शरीर शक्ति का संयोग है l इसी के संयोग से वन सम्पदा नगर वासियों के काम आई और एक वर्ष का समय हम सब के लिए बहुमूल्य बन गया l इस कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि ईश्वर ने , प्रकृति ने मनुष्य को असीमित अनुदान दिए हैं , अपने जीवन यापन के लिए राज्य या किसी की ओर मुंह ताकने के बजाय मनुष्य अपनी बुद्धि और श्रम का पूर्ण मनोयोग से इस्तेमाल कर के बहुत कुछ हासिल कर सकता है l
27 September 2022
WISDOM
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " ईर्ष्यालु व्यक्ति की जीवन यात्रा अधूरी सी होती है , जिसमे जो मिलता है , उसकी कद्र नहीं होती और जो नहीं मिल पाता , उसका विलाप चलता रहता है l ऐसे व्यक्ति को लगता है कि दूसरों का जीवन आसान है , उन्हें कोई कष्ट नहीं l ईर्ष्यालु व्यक्ति कभी भी अपने जीवन से संतुष्ट नहीं होता , असंतोष उसे हर पल घेरे रहता है l उसे लगता हैहै कि सबसे ज्यादा तकलीफ उसी के जीवन में है और दूसरे बिना किसी कठिनाई के ही आगे बढ़ते जा रहे हैं l " एक कथा है ------ एक व्यक्ति के मरने का समय आया तो देवदूत उसे लेने पहुंचे l उस व्यक्ति ने जीवन में कई पुण्य किए थे और पाप भी l देवदूत उसके हाथ में एक पुस्तक देते हुए बोले --- 'तुम्हारे पुण्य कर्मों के बदले यह पुस्तक तुम्हे देते हैं l यह नियति की पुस्तक है , इसमें सारे प्राणियों के भाग्य लिखे हैं , तुम चाहो तो इसमें कोई एक परिवर्तन अपने पुण्य कर्मों के बदले कर सकते हो l " उस व्यक्ति ने पुस्तक के पन्ने पलटने आरंभ किए , अपना पन्ना देखने से पूर्व वह दूसरों के भाग्य के पन्ने पढ़ने लगा l जब उसने अपने पड़ोसियों म के भाग्य के पन्ने देखे तो उनका भाग्य देखकर वह जल भुन गया और मन ही मन बोला --मैं कभी इन लोगों को इतना सुखी नहीं होने दूंगा और क्रोध में भरकर वह उनके पन्नों में फेर -बदल करने लगा l देवदूतों द्वारा दिए गए निर्देश के अनुसार परिवर्तन केवल एक बार ही किया जा सकता था l अत -: जैसे ही उसने एक बदलाव किया , देवदूत ने वह पुस्तक उसके हाथ से ले ली l अब वह व्यक्ति बहुत पछताया , क्योंकि यदि वह चाहता तो अपनी नियति में सुधार कर सकता था , पर ईर्ष्या के वशीभूत होकर वह दूसरों की नियति बिगाड़ने में लग गया और अवसर गँवा बैठा l मनुष्य ऐसे ही जीवन में आए बहुमूल्य अवसरों को गँवा देता है l
26 September 2022
WISDOM ----
प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने समाज में संतुलन बनाये रखने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया था , वह था ----- आश्रम व्यवस्था l इसके पीछे उद्देश्य यही था कि 65 -70 वर्ष की आयु तक व्यक्ति सांसारिक जीवन जी लेता है , इसके बाद स्थान खाली करो और नई पीढ़ी को खिलने का मौका दो l इसी विचार को ध्यान में रखकर निश्चित आयु पूर्ण कर लेने पर रिटायर करने की व्यवस्था की गई है l इसके मूल में एक कारण और भी था कि सांसारिक प्राणी होने के कारण लोभ , लालच , कामना , वासना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा , अहंकार आदि सभी में कम या ज्यादा होते हैं l अब यदि व्यक्ति की सन्मार्ग पर चलने की प्रवृत्ति नहीं है , नैतिक मूल्यों का ज्ञान नहीं है तो यही भावनाएं आयु बढ़ने के साथ -साथ विकृत रूप ले लेती हैं जिसके दुष्परिणाम सारे समाज को भोगने पड़ते हैं l युद्ध , दंगे , बड़े अपराध , अनैतिक , गैर क़ानूनी कार्य आदि के प्रमुख परिपक्व आयु के ही लोग होते हैं l संसार की आसुरी तत्वों से रक्षा के लिए ही ऋषियों ने कहा था कि एक आयु के बाद ईश्वर का नाम लो , अपने मन को विकारों से मुक्त करने का प्रयास करो ताकि आगे की यात्रा शांतिपूर्ण हो सके l कलियुग में दुर्बुद्धि का प्रकोप है इस कारण सभी क्षेत्रों में संतुलन बिगाड़ गया है l
WISDOM -----
हमारे आचार्य और ऋषियों का कहना है कि -- धन मानव जीवन के लिए आवश्यक है किन्तु धर्म से रहित धन व्यर्थ है , हानिकारक है , रोग -शोक को आमंत्रित करता है l ' इस कथन की सत्यता को आज संसार में देखा जा सकता है l भ्रष्टाचार , बेईमानी , शोषण करना , दूसरों का हक छीनना , अनैतिक साधनों से धन कमाना ये सब आसुरी प्रवृत्ति के लक्षण हैं l जब देवत्व की तुलना में असुरता बलशाली हो जाती है तब उसका परिणाम युद्ध , दंगे , तनाव , बीमारी , महामारी , आत्महत्या , अकाल मृत्यु आदि नकारात्मक घटनाओं में वृद्धि के रूप में देखने को मिलता है l पुराणों में एक कथा है ----- एक बार ऋषि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा ने उनसे कुछ आभूषण की मांग की l ऋषि ने कहा उनके कई शिष्य राजा हैं ,वे उनसे धन मांग कर लाएंगे लेकिन वही धन लाएंगे जो धर्म पूर्वक कमाया गया हो और जिससे राजकोष की हानि न हो l उस समय ईमानदारी बहुत थी , वे अनेक राजाओं के पास गए , उनके राजकोष में जो धन था वह तो धर्म पूर्वक अर्जित था , लेकिन ऋषि अगस्त्य उसमे से धन लेते तो राजकोष में घाटा आ जाता l अत: उन्होंने धन लेने से इनकार कर दिया और वापस लौटने लगे l रास्ते में उन्हें इल्वन नमक एक असुर मिला l उसने महर्षि का अभिप्राय जाना तो प्रार्थना की कि मेरे पास विपुल सम्पदा है , आप जितनी चाहे ले जा सकते हैं l ऋषि , इल्वन के महल में पहुंचे और हिसाब जांचना शुरू किया तो देखा वहां सम्पदा तो अपार थी लेकिन सब कुछ अनीति से , शोषण से , दूसरों को कष्ट देकर उपार्जित थी l ऋषि ने उसे लेने से मना कर दिया और खाली हाथ लौट आए और लोपामुद्रा से बोले --- " भद्रे ! धर्म से कमाई करने और उदारतापूर्वक उचित खर्च करने वालों के पास कुछ बचता नहीं l अनीति से कमाने वालों के पास ही विपुल धन पाया जाता है , लेकिन उसके लेने से हमारे ऋषि जीवन में बाधा पड़ेगी और अशांति होगी l " लोपामुद्रा ने इस सत्य को समझा और सादगी के साथ सुख पूर्वक जीवन जीने में ही गर्व का अनुभव किया l
WISDOM ----
उद्यान में भ्रमण करते -करते सहसा राजा विक्रमादित्य महाकवि कालिदास से बोले ,---" आप कितने प्रतिभाशाली , मेधावी हैं l साहित्य के क्षेत्र में आपकी विद्वता का कोई मुकाबला नहीं l भगवान ने आपका शरीर भी बुद्धि के अनुसार सुन्दर क्यों नहीं बनाया ? " कालिदास जी राजा के व्यंग्य को समझ गए l उस समय तो वे कुछ भी नहीं बोले l राजमहल आकर उन्होंने दो पात्र मंगवाए --- एक मिटटी का , एक सोने का l दोनों में जल भर दिया l कुछ देर बाद कालिदास ने राजा से पूछा --- " अब बताएं राजन ! किस पात्र का जल अधिक शीतल है ? " विक्रमादित्य ने उत्तर दिया --- " मिटटी के पात्र का l " तब कालिदास बोले --- " जिस प्रकार शीतलता पात्र के बाहरी आधार पर निर्भर नहीं है , उसी प्रकार प्रतिभा भी शरीर की आकृति पर निर्भर नहीं है l राजन ! बाहर के सौन्दर्य को नहीं , सद्गुणों को देखा जाना चाहिए l आत्मा का सौन्दर्य ही प्रधान होता है l विद्वता और महानता का संबंध शरीर से नहीं , आत्मा से है l "
25 September 2022
WISDOM ---
पुराण में कथा है कि परशुराम जी ने शिवजी से शिक्षा प्राप्त की l शिक्षा पूर्ण होने पर शिवजी ने अपने प्रिय शिष्य को ' परशु ' उपहार में दिया l संसार में फैले हुए अधर्म के उन्मूलन के लिए यह उपहार दिया और कहा --- " केवल दान , धर्म , जप -तप , व्रत , उपवास ही धर्म के लक्षण नहीं हैं l अनीति से लड़ने का कठोर व्रत लेना भी धर्म साधना का एक अंग है l शिवजी का आशीर्वाद पाकर परशुराम जी ने अनाचार विरोधी महान अभियान की तैयारी की l उनका कहना था कि अनीति ही हिंसा है और अत्याचार , अन्याय , अनीति के विरुद्ध खड़े होना मानवता का चिन्ह है l ' अनाचारी का मुकाबला अकेले नहीं किया जा सकता , यह बात हर युग में सत्य है अत: उन्होंने जन -सहयोग से अत्याचारियों के विनाश का व्यापक अभियान चलाया और इक्कीस बार उन्होंने अत्याचारियों , अहंकारियों का उन्मूलन कर पृथ्वी की सुरक्षा की l उनका कहना था कि किसी के पास कितनी ही बड़ी शक्ति क्यों न हो , जनता की संगठित सामर्थ्य से कम ही रहती है l आज संसार में शांति के लिए परशुराम जी जैसी शक्ति की जरुरत है l हर युग की समस्याएं भिन्न -भिन्न हैं लेकिन उनका निदान संगठित होकर ही किया जा सकता है l आज हमारी कृषि , कला , साहित्य , सम्पूर्ण पर्यावरण ही प्रदूषित हो गया है l कृषि में रसायन घुल जाने से लोग स्वस्थ नहीं हैं , प्रतिरोधक शक्ति कम हो गई है , ,कला और साहित्य के प्रदूषण से लोगों के चरित्र में गिरावट आई है l अब जागरूक होने की जरुरत है l आज सारा संसार एक मंच पर है , जिसके पास शक्ति है , सम्पदा है वही सारी दुनिया पर अपनी हुकूमत चलाना चाहता है ऐसे में अपने अस्तित्व को बचाना चुनौती है l जागरूक और ईमानदार होकर ही हम अपनी कृषि , शिक्षा , चिकित्सा , कला और संस्कृति को पुनर्जीवित कर सकते हैं l
WISDOM ---
समस्याएं हम सब के जीवन में हैं , दुःख , तकलीफों से कोई नहीं बचा है लेकिन यदि हम अपना द्रष्टिकोण सकारात्मक रखें , जो कुछ हमने खोया है , उसका दुःख मनाने के बजाय , जो हमारे पास है , उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद दें तो हम तनाव , बीमारी , निराशा , चिंता जैसे कष्टों से स्वयं को बचा सकते हैं l समय का पहिया घूमता रहता है , धैर्य रखना चाहिए l एक कथा है ---- एक सेठ जी थे , बहुत धन -वैभव था , किसी चीज की कोई कमी नहीं थी l एक दिन उनकी दुकान में आग लग गई , करोड़ों का नुकसान हो गया l रईसी से रहने की आदत बन जाये , फिर चाहे आमदनी कम हो जाये ,ठाठ -बाट से रहने की आदत जाती नहीं l सेठ और उनका पूरा परिवार बहुत तनाव , चिंता व दुखों से घिर गया l सेठ जी बीमार हो गए , महंगे अस्पताल का खर्चा , उधार भी चढ़ने लगा l किसी भी तरह स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा था l एक दिन एक साधु महाराज वहां आए , उन्होंने सारी स्थिति को समझा और कहा --पहली बात कि आप हर प्रकार से सुखी व्यक्ति का कुरता पहन लें तो स्वस्थ हो जायेंगे l फिर उन्होंने परिवार के सदस्यों को समझाया कि अनावश्यक खर्च कम करो , सादगी से रहो ,कुछ समय बाद पुन: स्थिति अच्छी हो जाएगी l साधु के कहे अनुसार सेठ ने अपने नौकर को सुखी व्यक्ति की तलाश में भेजा , सेवक ने जब आकर सब का हाल बताया तो सेठ को समझ में आया कि लोगों के जीवन बड़े -बड़े दुःख हैं , कष्ट हैं , औरों के मुकाबले उनका कष्ट तो बहुत कम है l इतने में ही सेवक एक व्यक्ति को पकड़ लाया जो हर तरह से सुखी और प्रसन्न था l सेवक ने बताया कि यह खेत में गाना गा रहा था और हल चला रहा था , इसकी पत्नी रोटी , प्याज और नमक ले आई दोनों ने प्रेम से खाना खाया और दोनों ही बहुत खुश थे l सेठ जी ने उस व्यक्ति से निवेदन किया कि वह अपना कुरता दे जिसे पहन कर वे स्वस्थ हो जाएँ l तब उसने कहा कि वो तो खेत में काम करता है ,उसके पास कुरता खरीदने के लिए पैसे ही नहीं हैं l जो भगवान ने दिया उसमे हम खुश हैं l अब सेठ और उसके परिवार को समझ में आया कि अभावों के बावजूद वह अपने जीवन से पूर्णतया संतुष्ट है l जीवन में प्रसन्नता संचित सम्पदा से नहीं , अपना द्रष्टिकोण बदलने से आती है l
24 September 2022
WISDOM ---
राजा भीमदेव गुजरात की एक रियासत के शासक थे l भीमदेव का पुत्र मूलराज प्रतिभाशाली होने के साथ -साथ दयालु प्रवृत्ति का भी था l एक बार राज्य में वर्षा न होने से किसानों के खेत सुख गए , इसलिए वे राजकोष में लगान जमा नहीं कर पाए l बदले में राजा के कर्मचारी गांवों में पहुंचे और किसानों के घरों से उनका सामान उठा लाये l किसी दुःखी किसान से जब मूलराज को यह पता चला तो उसका ह्रदय द्रवित हो उठा l उन्ही दिनों मूलराज घुड़सवारी सीख रहा था l वह जब घुड़सवारी में पारंगत हो गया तो राजा ने उसकी कला को परखा l राजा उसकी घुड़सवारी के करतब देखकर प्रसन्न हो उठे और बोले ---" बेटा ! तुम्हे मुंहमांगा इनाम मिलेगा l बोलो तुम क्या चाहते हो ? " राजकुमार ने कहा --- "पिताजी ! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं और मुझे कुछ देना चाहते हैं तो जिन किसानों की संपत्ति लगान न देने के कारण जब्त कर ली गई है , उसे तुरंत वापस करने का आदेश देने की कृपा करें l " राजा अपने पुत्र की दयालुता देखकर गदगद हो उठे और उन्होंने उसी समय किसानों की जब्त संपत्ति वापस करने के आदेश दे दिए l
WISDOM ----
रामकृष्ण परमहंस के पास नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद ) को आते काफी अवधि हो चुकी थी l एक दिन वे अपने शिष्यों से बोले --- " अब तक तो नरेंद्र के पास सब कुछ था , पर अब माँ इसे बहुत दुःख देंगी l क्यों ? क्योंकि उन्हें इसका विकास करना है l " नरेंद्र को काफी दुःख -वेदनाएं सहन करनी होंगी l तभी वह लोक -शिक्षण हेतु गढ़ पायेगा अपने आपको l उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि दुःख ही भाव -शुद्धि करते हैं , दुःख ही व्यक्ति को अन्दर से मजबूत बनाते हैं l नरेंद्र के ऊपर दुःखों की बाढ़ आ गई l सब कुछ छिन गया l रोटी के लिए तरस गए l कई गहरी पीड़ाएं एक साथ आईं l उनने अपनी बहन को आत्महत्या करते देखा , माँ का रुदन देखा l रामकृष्ण उनकी हर पीड़ा में दुःख भी व्यक्त करते थे , पर जानते थे , यह सब जरुरी है l इसी ने नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनाया l
23 September 2022
WISDOM ----
एक मिशनरी ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा --- " वे माता काली के रोम -रोम में अनेक ब्रह्माण्ड होने की बातें करते हैं और उस छोटी सी मूर्ति को काली कहते हैं --यह कैसे ? " इस पर परमहंस जी ने उनसे पूछा ---" सूरज दुनिया से कितना बड़ा है ? " उन्होंने उत्तर दिया ---- " नौ लाख गुना l " परमहंस ने फिर पूछा --- " तब वह इतना छोटा कैसे दिखाई देता है ? " मिशनरी ने कहा ---" नौ लाख गुना होने पर भी सूरज हमसे बहुत दूर है l इसलिए वह छोटा दिखाई देता है l " परमहंस जी ने फिर पूछा --- " कितनी दूर ? " उन्होंने बताया -- " नौ करोड़ तीस लाख मील l " परमहंस जी ने विनम्रता से जवाब दिया --- " ठीक इसी प्रकार आप माँ काली से इतनी दूर हैं कि आपको वे छोटी दिखाई देती हैं l मैं उनकी गोद में हूँ इसलिए मुझे वे बड़ी लगती हैं l आप स्थूल द्रष्टि से पत्थर देखते हैं , मैं आस्था की द्रष्टि से शक्ति पुंज देखता हूँ l "
WISDOM ----
भिखारी दिन भर भीख मांगता -मांगता शाम को एक सराय में पहुंचा और भीतर की कोठरी में भीख की झोली रखकर सो गया l थोड़ी देर बाद एक किसान आया l उसके पास रुपयों की थैली थी l किसान बैल खरीदने गया था l रात को वह भी उसी सराय में रुका जहाँ भिखारी था और वह रुपयों की थैली अपने सिराहने रखकर सो गया l भीख की झोली रुपयों की थैली से बोली --- : बहन ! हम तुम एक बिरादरी के हैं , इतनी दूर क्यों हैं , आओ हम तुम एक हो जाए ? ' रुपयों की थैली ने हंसकर कहा --- " बहन ! क्षमा करो , यदि मैं तुमसे मिल गई तो संसार में परिश्रम और पुरुषार्थ का मूल्य ही क्या रह जायेगा l "
22 September 2022
WISDOM ----
कलियुग का सबसे बड़ा लक्षण है ---दुर्बुद्धि l ईर्ष्या द्वेष इतना है कि मनुष्य अपनी सारी ऊर्जा दूसरों का सुख छीनने में लगा देता है l व्यक्ति को जो ईश्वर ने दिया है वह उसमें खुश नहीं होता , उसकी नजर हमेशा उन पर होती है जिनसे वह ईर्ष्या करता है l अपने प्रतिद्वंदी को सुख का , सम्मान का एक कतरा भी मिल जाये यह उसे मंजूर नहीं होता l वह अपनी पूरी शक्ति , पूरे साधन लगाकर उसके सुखों के मध्य दीवार खड़ी कर देता है l यह एक तरह की मानसिक बीमारी है , पागलपन है l सत्साहित्य का अध्ययन न करने के कारण वह अपना अनमोल जीवन ऐसे ही गँवा देता है l कंस ने देवकी के सात नवजात पुत्रों का वध किया , उन्हें जेल में बहुत कष्ट दिया l गोलोक में राधा जी कृष्ण से पूछती हैं कि कंस इतना निर्दयी और अत्याचारी है , कहीं वो देवकी और वसुदेव की हत्या न कर दे l तब भगवान कहते हैं --- नहीं , कर्मों के अनुसार जो विधान बनता है , उससे ज्यादा कोई कुछ नहीं कर सकता l कहने का तात्पर्य है कोई किसी के भाग्य को नहीं बदल सकता , जो ऐसा दुस्साहस करता है तो कंस और रावण की तरह स्वयं भगवान उसका अंत कर देते है l आज संसार में मनुष्य का सामना ऐसे ही रावण , कंस , दुर्योधन , मंथरा , सूर्पनखा जैसे लोगों से होता है , ऐसे लोगों के मध्य जीवन जीने के लिए जीवन जीने की कला के ज्ञान की जरुरत होती है l ऐसे हठी लोग मर जाते हैं पर सुधरते नहीं हैं इसलिए हमें ही स्वयं को समझाना है कि वे अपने संस्कार के अनरूप अपना कार्य करते रहें और हम उनकी ओर से अपना ध्यान हटाकर , ईश्वर विश्वास का सहारा लेकर जीवन -पथ पर आगे बढ़ते रहें l
21 September 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' जीवन एक अनंत प्रवाह है l मनुष्य माया -मोह में फंसकर कर्म करता रहता है , इस कारण जीवन का आवागमन का कर्म चलता रहता है l मनुष्य कर्मानुसार एक -दूसरे का कर्ज ही देने आता है l केवल मनुष्य रूप में ही नहीं , पशु -पक्षी बनकर भी कर्ज चुकाना पड़ता है l एक कथा है ---- एक सेठ जब धन उधार देता था तो यह लिखवा लेता था कि यदि इस जन्म में कर्ज न चुका सके तो अगले जन्म में चुका देंगे l चार चोरों ने सोचा अगला जन्म किसने देखा है ? चलो रुपया उधार लेकर कुछ दिन मौज -मस्ती करेंगे l यह सोचकर सेठ के पास गए l सेठ ने रूपये दे दिए और अगले जन्म में चुका देने वाले प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करा लिए l चोरों ने रात को वहीँ रुकने का निश्चय किया , सेठ ने उन्हें अपने बाहर के कमरे में रुकने की व्यवस्था कर दी l कमरे के निकट ही गाय और बैल बंधे थे l एक चोर जानवरों की बोली समझता था l रात में उसने सुना , गाय कह रही थी ---" भैया , मेरा कर्ज तो सुबह समाप्त हो जायेगा , कल दूध देकर मेरी मुक्ति हो जाएगी l " बैल ने कहा --- " बहन , मुझ पर तो अभी बहुत कर्ज बाकी है l पता नहीं कब छुटकारा मिलेगा ? " चोर सुबह तक रुक गए l सुबह उन्होंने देखा कि दूध देने के बाद गाय मर गई l चोर डर गए , सेठ के पास जाकर यह कहकर धन वापस कर दिया कि हम अगले जन्म के लिए कर्जदार नहीं बनना चाहते l उन्होंने ईमानदारी से जीवन जीने का निश्चय किया l ----- कलियुग में दुर्बुद्धि का फेर है , लोग अगले जन्म का सोचते नहीं , करोड़ों कर्ज लेकर भाग जाते हैं , यदि हम अपने धर्म ग्रंथों पर , ऋषियों की वाणी पर विश्वास करते हैं तो इतने कर्ज को कितने जन्मों में , किस तरह चुकाएंगे , यह सारा हिसाब -किताब करना धर्मराज के लिए भी बहुत कठिन कार्य है l
20 September 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- 'इस समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इस समय सभी वर्णों ने अपनी -अपनी गरिमा को भुला दिया है l इस समय केवल एक ही वर्ण रह गया है वह है ---व्यापारी l डॉक्टर , इंजीनियर , कलाकार , शिक्षक , पंडित ,क्षत्रिय , वैश्य आदि सभी अपना कर्तव्य भूलकर केवल धन के पीछे लगे हैं l सारा व्यवहार पैसे के लिए ही चल रहा है l ' वर्तमान की स्थिति इतनी विकट है कि अमीरी की भी दौड़ है l कौन सबसे आगे है ? यह भी सत्य है कि केवल ईमानदारी और सच्चाई से बहुत अमीर नहीं हुआ जा सकता l मेहनत तो करनी पड़ती है लेकिन वह अधिकांशत: दंद -फंद और हेरा -फेरी जैसी नकारात्मक दिशा में ज्यादा होती है l ऐसी दौड़ का कोई सकारात्मक परिणाम भी नहीं होता ---- एक कथा है ---- एक सेठ जी थे , अथाह धन -सम्पदा थी l दिन -रात भागा -दौड़ी करते , खाने -पीने का भी कोई होश नहीं l उनके घर में एक नौकर सेठ जी को देखकर सदा यही सोचा करता कि ये बेचारे सेठ किसके लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं , इतना धन किसके लिए जोड़ रहे हैं ? एक कन्या है उसका विवाह हो ही गया l अब वो नौकर था , उसे सेठ को समझाने की हिम्मत नहीं थी l विधि का विधान देखिए , एक दिन सेठ को अचानक हार्ट अटैक आया और वे परलोक सिधार गए l सेठ की खूबसूरत पत्नी ने उस नौकर से विवाह कर लिया l उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया ,कि वो बेचारा सेठ उसी के लिए दिन -रात एक किए था l
एक और कथा है --- व्यक्ति चाहे इस लोक में हो या उस लोक में , धन का लालच ऐसा है जो कभी जाता नहीं l --- एक सेठ जी की मृत्यु हो गई l जीवन में कुछ दान -पुण्य भी किया था , कुछ पापकर्म , शोषण आदि भी किया था l जब धर्मराज के यहाँ हिसाब -किताब हुआ तो धर्मराज ने कहा ---" सेठ जी ! आपके लिए कुछ दिन का स्वर्ग है , कुछ दिन का नरक l आप पहले कहाँ जाना पसंद करेंगे ? सेठ जी ने कहा --- " महाराज ! चाहे स्वर्ग हो या नरक मुझे तो वहां भेज दो , जहाँ चार पैसे की आमदनी हो l " इस समय का सत्य यही है कि धन प्राथमिकता है उसके बदले चाहे बीमारी , तनाव , अनिद्रा कुछ भी हो l
19 September 2022
WISDOM -----
श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ---ज्ञान , कर्म और भक्ति का समन्वय जीवन के समग्र विकास के लिए अनिवार्य है l इन तीनों का समन्वय होने पर ही सुख , शांतिमय जीवन बीत सकेगा l कर्म और भक्ति के अभाव में ज्ञानी व्यक्ति , अहंकारी बन सकते हैं l ज्ञान के अभाव में मनुष्य के कर्म दुष्कर्म हो सकते हैं और ज्ञान व कर्म के अभाव में केवल भक्ति व्यक्ति को अन्धविश्वासी तथा अकर्मण्य बना सकती है l भक्ति भी ज्ञान और कर्म से युक्त होनी चाहिए l एक कथा है ----- मरने के बाद एक व्यक्ति की आत्मा को यमदूत धर्मराज के सामने ले गए , दूतों ने बताया --- " यह एक बड़ा धर्मात्मा है l युवावस्था में अपने माता -पिता और स्त्री , बच्चों को छोड़कर यह जंगल में चला गया और जीवन भर तप करता रहा l " धर्मराज ने कहा --- " कर्तव्यों का त्याग कर कोई व्यक्ति धर्मात्मा नहीं बन सकता l परिवार के लोगों के साथ विश्वासघात कर के इसने अधर्म ही कमाया , ऐसा भजन किस काम का जो कर्तव्यों को भुलाकर किया जाए l इसे पुन: धरती पर भेजो और कर्तव्य पालन के साथ भजन करने का आदेश करो , तभी इसे स्वर्ग में स्थान मिलेगा l " यमदूतों ने दूसरे व्यक्ति की आत्मा उपस्थित की और कहा --- " यह व्यक्ति बड़ा कर्तव्यपरायण है l काम को ही सब कुछ समझता है l इसकी पत्नी बीमार पड़ी और मर गई , पर यह उसकी कुछ भी परवाह न कर के अपने कर्तव्य में ही लगा रहा l " धर्मराज ने कहा --- " ऐसे ह्रदयहीन का स्वर्ग में क्या काम ? भावना पूर्वक किया गया कर्तव्य ही प्रशंसनीय हो सकता है l जिसे अपने नैतिक कर्तव्यों का ज्ञान नहीं , उसकी शारीरिक दौड़ -धूप क्या महत्त्व रखेगी l इसे प्रथ्वी पर भेजो और कहो कि भावना पूर्वक जीवन जिए और दूसरों से प्रेम करना सीखे , तभी उसे स्वर्ग में स्थान मिलेगा l " एक तीसरे व्यक्ति की आत्मा लाई गई l यमदूतों ने कहा --- " यह एक साधारण गृहस्थ है l सदा आस्तिक रहा , प्रेमपूर्वक परिवार को सुविकसित किया , पवित्र जीवन जिया और दूसरों के उत्थान के लिए निरंतर प्रयत्न करता रहा l " धर्मराज ने कहा --- " स्वर्ग ऐसे ही लोगों के लिए बनाया गया है , इसे आदरपूर्वक ले जाओ और आनंद पूर्वक यहाँ रहने की व्यवस्था कर दो l " स्वर्ग का अधिकारी वही हो सकता है जिसने ज्ञान , कर्म और भक्ति तीनों को जीवन में अपनाया है l
18 September 2022
WISDOM -----
मनुष्य के जीवन के विभिन्न पक्ष हैं ,इनमें सबसे महत्वपूर्ण है आर्थिक पक्ष l आर्थिक क्षेत्र में विकार आ जाने से ही जीवन का प्रत्येक पक्ष गड़बड़ा जाता है l संसार में जो बड़ी -बड़ी क्रांतियाँ हुई हैं उनके मूल में जो कारण था वह --आर्थिक था l एक समय था जब केवल व्यापार -व्यवसाय में हानि -लाभ देखा जाता था l आज संसार में इतनी अधिक समस्याएं इसलिए हैं कि जीवन का प्रत्येक क्षेत्र व्यवसाय बन गया है , इस कारण उस क्षेत्र की पवित्रता समाप्त हो गई है l ईमानदारी ,सच्चाई से काम करने वाले बहुत हैं लेकिन उनकी तुलना में दीमक की प्रकृति की संख्या बहुत अधिक है l अमीर और गरीब को देखने का नजरिया भी भिन्न है l एक वृद्ध व्यक्ति मजदूरी करे , ठेला चलाए , बहुत मेहनत कर के परिवार का पालन पोषण करे तो वह दया का पात्र है लेकिन वह व्यक्ति जिसने जीवन में नौकरी कर के पर्याप्त धन कमा लिया , उसके पास जमा -पूंजी आदि सब कुछ है लेकिन फिर भी वह और धन कमाने के लिए , समाज में अपनी पहचान बनाये रखने के लिए या समय व्यतीत करने के लिए कहीं न कहीं जुड़ा है , अब क्योंकि वह समर्थ है इसलिए उसके प्रति कोई भाव नहीं है जबकि सत्य ये है कि ऐसे व्यक्ति कहीं काम कर के युवा पीढ़ी का हक छीन रहे हैं l धन को ही स्टेटस सिम्बल माना जाने के कारण अब ऐसे व्यक्ति समाज को अपने ज्ञान का लाभ नहीं देते बल्कि सारे गुर , सभी बारीकियां समझ आ जाने के कारण भ्रष्टाचार में बड़ा योगदान देते हैं l इन सबके पीछे सबसे बड़ा कारण है ---दुर्बुद्धि l दुर्बुद्धि के कारण ही संसार में सारी समस्याएं हैं l
WISDOM ----
तुलसीदास जी ने कहा है ---- 'कर्मप्रधान विश्व करि राखा l जो जस करहि सो तस फल चाखा l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' यह कर्मफल कभी -कभी तुरंत ही इसी जन्म में मिल जाता है , परन्तु कभी -कभी ऐसा भी होता है कि दुष्ट कर्म करने वाले तो सुखी और संपन्न दिखाई देते हैं तथा त्यागी , तपस्वी दुखी होते हैं तो विश्वास डगमगा जाता है l मनुष्य सोचता है कि जब दुष्ट व्यक्ति आराम का जीवन जीते हैं और सज्जन कष्ट पा रहे हैं तो फिर त्याग -तपस्या का जीवन क्यों जिएं ? यह भावना मनुष्य को उद्दंड और नास्तिक बना देती है l विधाता ने मनुष्य को कर्म करने की छुट दी है , परन्तु फल को अपने हाथ में रखा है l यदि झूठ बोलते ही मनुष्य की जीभ काटकर गिर जाती , चोरी करते ही हाथ कट जाते तो व्यक्ति दुष्कर्म करने से डरता , किन्तु कर्म का फल विधि के विधान के अनुसार मिलता है तो पापी व्यक्ति को फलता -फूलता देखकर मनुष्य आस्थाहीन हो जाता है l आचार्य श्री लिखते हैं --यह बात निश्चित है कि ईश्वर के यहाँ देर है , अंधेर नहीं l '' कर्म का फल कब और कैसे मिलेगा , यह काल निश्चित करता है l एक कथा है ------ एक स्त्री नि:संतान थी l किसी तांत्रिक ने उसे बताया कि किसी बच्चे को मरवाकर गड़वा दे तो उसके संतान होगी l उसने दूर गाँव के किसी गरीब बच्चे के साथं ऐसी ही निर्दयता की l ईश्वर की लीला देखिए उसके दो पुत्र हुए l दोनों ही बहुत सुन्दर और होनहार l उस स्त्री के कर्म का जिन्हें पता था , वे सब यहो कहते थे कि देखो इस औरत ने कितना नीच कर्म किया और भगवान ने इसको सजा देने के बदले दो -दो बेटे दे दिए l ईश्वर के यहाँ कितना अंधेर है ? बच्चे बड़े हुए , पढ़ने -लिखने में बहुत होशियार , देखने में सुंदर लेकिन एक दिन दोनों नदी में नहा रहे थे , अचानक एक का पैर फिसला l दूसरा उसे बचाने के लिए आगे बढ़ा तो वह भी संभल नहीं सका और दोनों नदी में डूब गए l तब वह रो -रोकर सब से यही कह रही थी थी कि भगवान में मेरे पाप की सजा मुझे दे दी l ईश्वर के घर देर है , अंधेर नहीं l ' कर्मफल का नियम स्वयं ईश्वर पर भी लागू होता है l भगवान राम ने बालि को छिपकर बाण मारा था , अगले जन्म में वे कृष्ण बने और बालि बहेलिया और उसने उसी प्रकार उसी बाण को उन्हें मारा और उनकी जीवन लीला समाप्त हुई l राजा दशरथ ने श्रवण कुमार को तीर मारा था , उसके माता -पिता की मृत्यु पुत्र -शोक में हो गई l उनके शाप के कारण राजा दशरथ की मृत्यु भी पुत्र -शोक में हुई l गीता में भगवान ने कहा है --- 'गहना कर्मणोगति l '
17 September 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' प्रयत्न और कर्म साधना से सब कुछ संभव है l संसार में आत्म उन्नति के लिए जो भी थोड़ा कुछ करने का साहस दर्शाते हैं -- उनके लिए सहायक परिस्थितियां अपने आप निर्मित होती चलती हैं l कभी एक मुजरिम रहे जाइगेर ने आगे चलकर समूचे विश्व को अपने साहित्य द्वारा नया प्रकाश और नयी जीवन दिशा दी l ----- जाइगेर जर्मनी के एक विख्यात लेखक हो गए हैं l जब वे केवल बारह वर्ष के थे , तब उन्हें रोजगार के लिए भटकना पड़ा l सुस्त और दुबले -पतले होने के कारण किसी ने भी उनको अपने यहाँ नौकर नहीं रखा l फिर वे एक मोटर कंपनी के मालिक से मिले l वह कंपनी अवैध धंधों के कारण बदनाम थी l मालिक ने कहा --बदनामी के कारण कोई यहाँ पर झाड़ू लगाने को तैयार नहीं है l जाइगेर ने उससे विनती की और कहा कि मैं अपना काम ईमानदारी से करूँगा l मालिक की हाँ सुनते ही उसने झाड़ू उठाई और कंपनी की पूरी इमारत सफाई कर के चमका दी l मालिक उससे बहुत खुश था l उस कंपनी में पहले से कुछ अपराधी किस्म के लोग काम करते थे , वे जाइगेर के मालिक पर बढ़ते प्रभाव से चिढ़ते थे इसलिए उन्होंने जाइगेर पर चोरी का इल्जाम लगा दिया जिससे उसको जेल हो गई l कैद से छूटने के बाद अब उसे रोजगार मिलना बहुत कठिन हो गया l भूखा क्या न करता ? उसने अपना एक गिरोह बना लिया और पचास से अधिक डकैतियां और चोरियां की l एक दिन पुलिस की गिरफ्त में आ गया और जेल में कष्ट सहना पड़ा l यहाँ उसे अपने अपराधी जीवन के बारे में सोचकर बहुत दुःख होने लगा और उसने अपनी व्यथा साबुन के एक रैपर पर कविता रूप में लिख डाली l जेल के पादरी को उसने अपने मन की व्यथा सुनाई तो उसे इसकी साहित्यिक प्रतिभा पर बहुत आश्चर्य हुआ , उसने सोचा कि यदि इसकी सहायता की जाये तो यह अपना जीवन भी सुधार सकेगा और दूसरे सैकड़ों लोगों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे सकेगा l पादरी ने सरकार की ओर से उसकी इस रूचि को विकसित करने के लिए साधन जुटा दिए l जाइगेर ने कविता और गद्य के सैकड़ों पृष्ठ जेल में ही लिखे l जेल से छूटने के बाद वह दिन भर मजदूरी करता और शाम को नियम से लिखता l उसने एक अच्छा उपन्यास ' दी फोट्रेस ' लिख डाला l पादरी की मदद से वह उपन्यास प्रकाशित हुआ l इस कृति ने उसे पूरे जर्मनी में प्रसिद्ध ओर लोकप्रिय बना दिया l बाद में उसकी अन्य रचनाएँ भी सर्वाधिक संख्या में बिकीं l निरंतर प्रयास और संघर्ष करने से जीवन में सफलता अवश्य मिलती है l
16 September 2022
WISDOM------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " ईर्ष्या एक घातक विष है , मनोविकार है l यह बहुत ही जहरीली और नकारात्मक भावना है l यह अंगीठी की उस आग की तरह है , जो ईर्ष्यालु व्यक्ति के मन -मस्तिष्क में सदैव जल रही होती है l ईर्ष्या मनुष्य की एक हीन भावना है , वह दूसरों की अच्छाई से , सफलता से प्रेरणा लेने के बजाय हमेशा दूसरों के सुख -शांति ,सफलता और समृद्धि को देख-देखकर जलता -भुनता रहता है l वह हमेशा यही सोचता है कि आगे बढ़ते लोगों की राह में रोड़ा कैसे बना जाए ? उनको कैसे नीचा दिखाया जाये , जिससे समाज में उनका मजाक बने और कैसे उनकी खुशियाँ छीनी जाएँ l " ईर्ष्या के घातक परिणाम को लेकर एक रोचक कथा है ---- ' एक बार एक महात्मा ने अपने प्रवचन में शिष्यों से अनुरोध किया कि वे अगले दिन अपने साथ एक थैली में बड़े आलू साथ लेकर आएं और उन आलुओं पर उन व्यक्तियों के नाम लिखकर लाएं जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं , नफरत करते हैं l सभी शिष्यों ने उनकी आज्ञा मानकर ऐसा ही किया l अब महात्मा जी ने कहा कि थैले में ये आलू वे सात दिनों तक हर पल अपने साथ रखें l वे सभी शिष्य सोते -जागते , उठते -बैठते हर समय उन आलुओं का बोझा ढो रहे थे l जिसके पास जितने अधिक आलू थे वह उतना ही अधिक परेशान था l जैसे -तैसे सात दिन बीते , आठवें दिन वे महात्मा के पास पहुंचे और कहा कि हम तो इन आलुओं से परेशान हो गए l महात्मा जी के कहने पर उन्होंने अपने -अपने थैले नीचे रख दिए और चैन की साँस ली क्योंकि उन आलुओं से बहुत बदबू आने लगी थी l महात्मा जी ने कहा ---मैंने आपको यही महसूस करने के लिए ऐसा करने को कहा था l जब मात्र सात दिनों में ये आलू बदबू देने लगे , बोझ लगने लगे , तब जरा सोचिए जी लोगों से आप ईर्ष्या करते हैं , नफरत करते हैं , उनका आपके मन व दिमाग पर कितना बोझ होगा l उन आलुओं की तरह आपका मन व दिमाग भी बदबू से भर जाता है , यह बोझ आप केवल सात दिन नहीं , सारी जिन्दगी ढोते हैं l इसलिए ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाओं के बोझ को अपने मन से निकाल फेंकिये l आचार्य श्री लिखते हैं ---ईर्ष्या के रोग से बचने के लिए आप ईश्वर पर विश्वास रखें , उनकी शरण में जाएँ l ईश्वर ने जो आपको दिया है ,उसे देखें , उसका महत्त्व समझें l अपनी शक्ति और सामर्थ्य को पहचाने और सही दिशा में लगायें l सबसे बढ़कर निष्काम कर्म करें , सेवा के कार्यों से मन के विकार दूर होने लगते हैं और मन निर्मल हो जाता है l
15 September 2022
WISDOM ------
ऋषियों का कहना है कि हम इस संसार में आए हैं तो इसका कोई कारण है --हमें किसी का कर्ज चुकाना है या कोई अपना कर्ज चुकता करेगा l यह कर्ज किसी भी रूप में हो सकता है l हम अपने जीवन में जिसके भी संपर्क में आते हैं चाहे वह भूमि हो , संस्था हो , पशु -पक्षी हों , संतान , रिश्ते -नाते --जो भी हों उन सबसे हमारा जन्म -जन्मान्तर का लेन -देन होता है जिसे निपटाने के लिए हम जन्म लेते हैं जैसे --किसी की संतान बहुत बीमार है , लाखों रूपये उसकी बीमारी पर खर्च हो रहे हैं तो इसका अर्थ है कि उस व्यक्ति पर अपनी संतान का , उस चिकित्सक का पिछले जन्मों का कर्ज है जिसे वह चुका रहा है l हम इस संसार में सुख -दुःख , हानि -लाभ , मान -अपमान , प्रेम , तिरस्कार जो भी महसूस करते हैं , वह सब कर्ज है जो हम चुका रहे हैं या कोई हमसे वसूल कर रहा है l कर्ज चुकने के बाद ही मुक्ति है l एक कथा है --- एक राजा के संतान तो होती थी परन्तु एक -दो साल की होकर मर जाती थी l जब उसके पांचवें पुत्र का जन्म हुआ तो उसने ज्योतिषियों को बुलाकर उसकी जन्म पत्री दिखाई l ज्योतिषी ने कहा --- " महाराज 1 अब तक आपके जो पुत्र हुए हैं , वे सब आपने कर्ज चुकाने आए थे , साल -दो साल में अपना कर्ज लेकर चले गए l , किन्तु आपका यह पुत्र अपना कर्ज चुकाने आया है , इसलिए आप इसे कोई कार्य न करने दें , जिससे यह आपका कर्ज न चुका सके l यह आपके साथ तब तक बना रहेगा ,जब तक कर्ज न चुका दे l " राजा यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ , वे उस पर दिल खोलकर पैसा लुटाते थे , जिससे वह और अधिक कर्जदार हो जाये l जब वह पंद्रह वर्ष का हुआ तो एक दिन राज कर्मचारियों के साथ रथ पर बैठकर घूमने जा रहा था तो उसने देखा कि रास्ते में एक आदमी बेहोश पड़ा है l उसने रथ रोककर उसे उठाया l उसकी जेब से उसका पता मिल गया l राजकुमार ने उसे रथ पर बिठाकर उसे उसके घर पहुँचाया l वह एक सेठ का बेटा था , सेठ बहुत खुश हुआ l उसने अपने गले से मोतियों की माला उतारकर राजकुमार के गले में पहना दी l राजकुमार ने बहुत मना किया , पर सेठ ने कहा --- " तुमने मुझ पर जो उपकार किया उसका बदला तो मैं नहीं चुका सकता , पर तुम इसे स्वीकार कर लो l " राजकुमार घर आया , वह माला अपनी माता को दे दी और खाना खाकर सोया तो सोता ही रह गया l घर में हाहाकार मच गया l ज्योतिषी को बुलाया गया l राजा ने कहा --- " पंडित जी , आपकी ज्योतिषी विद्या भी झूठी हो गई , क्योंकि मैंने तो इससे कोई धन नहीं लिया l " तब तक रानी ने वह मोतियों की माला लाकर दी और बताया कि यह माला उसे किसी सेठ ने दी थी l ज्योतिषी ने कहा ---" देखिए महाराज ! ज्योतिषी विद्या झूठी नहीं हुई बल्कि आप यह भी देखिए कि इसे आपका कर्ज तो चुकाना ही था , उस सेठ से कर्ज लेना भी था l उस सेठ से अपना कर्ज लेकर तथा आपसे कर्ज मुक्त होकर वह चला गया l " इस संसार में यही लेन -देन चलता रहता है l केवल मनुष्य रूप में ही नहीं कभी -कभी गाय , बैल , कुत्ता , बिल्ली , पक्षी बनकर भी कर्ज चुकाना पड़ता है l प्रकृति में हिसाब बराबर होता है , लेन -देन में एक पैसा , एक पाई भी इधर से उधर नहीं होता l
WISDOM ----
लघु -कथा ---- एक आदमी अकसर शमशान में जाकर बैठ जाता था l जब सब उससे पूछते कि यहाँ क्यों बैठे हो तो वह कहता --- " एक दिन तो यहाँ आना ही है , मैं स्वयं ही आ गया l " सब उसे पागल कहते थे l एक दिन एक सेठ की सवारी उधर से निकली तो सेठ ने उसे बुलवाया और उससे वहां बैठने का कारण पूछा , तो उसने कहा --- " एक दिन तो तुम्हे भी यहाँ आना ही है l " यह सुनकर सेठ जी बहुत क्रोधित हुए l उन्होंने कहा --- " तुम मूर्ख हो , मैं अब तक किसी मूर्ख की तलाश कर रहा था l मैं तुम्हे सोने की छड़ी देता हूँ l " उस पागल ने कहा --- " मैं इसका क्या करूँ ? " सेठ जी ने कहा --- " जो तुमसे भी ज्यादा मूर्ख हो उसे दे देना l वह छड़ी हाथ में लेकर घूमता रहता l एक दिन शहर की तरफ गया तो पता लगा कि वे सेठ जी बहुत बीमार हैं l वह उन्हें देखने पहुँच गया l सेठ जी से पूछा --- ' कैसे हो ? ' सेठ जी ने कहा -- " बस , अब तो जाने की तैयारी है l " उसने पूछा --- " कहाँ जा रहे हो ? " सेठ ने कहा --- " जहाँ सब जाते हैं l ' उस व्यक्ति ने कहा --- " तो आपने यात्रा की तैयारी तो की होगी ? ये धन -दौलत , ये सुख -सुविधा का सामान क्या -क्या ले जा रहे हो ? " सेठ ने क्रोध में कहा --- " तुम बहुत मूर्ख हो , वहां पर कोई वस्तु कैसे ले जा सकता है ? " उस व्यक्ति ने कहा --- " सेठ जी , मुझसे बड़े मूर्ख तो आप हैं l आपके पास इतनी धन -दौलत , इतने नौकर -चाकर , इतनी शक्ति सब कुछ था l यदि आप इस धन का , अपनी शक्ति का सदुपयोग करते तो यह पुण्य आपके साथ जाता l अब तो वह समय निकल गया l मनुष्य जन्म अनमोल है , जो वक्त गुजर गया , वह अब कभी वापस नहीं आएगा l पर खैर आप अपनी छड़ी वापस ले लो , क्योंकि मैं अपने से अधिक मूर्ख की तलाश कर रहा था l "
13 September 2022
WISDOM -----
किसी की कृपा पर पलने वाला व्यक्ति एक तरह से अपने ऊपर कृपा करने वाले का गुलाम हो जाता है और फिर वह उस व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक कार्य को उचित बताता है , उसके द्वारा अत्याचार , अन्याय किसी के भी प्रति किया जाता है तो वह उसे अपनी मौन स्वीकृति देता है l धन का लालच , सुख -सुविधा से जीवन जीने की चाह , समाज में अपनी पहचान बनाना --ऐसे कई कारण हैं जिनसे व्यक्ति अपने से समर्थ की गुलामी को स्वीकार कर लेता है l उसके लिए स्वाभिमान से जीना एक कठिन और असंभव कार्य होता है l यही कारण है कि समाज पर अन्याय , अनीति और अत्याचार की गाथा युगों से चली आ रही है l ----द्रोणाचार्य ने अपने जीवन में गरीबी के दिन देखे थे l उनका पुत्र अश्वत्थामा जब दूध के लिए रोता था तब उसकी माँ उसे आटा पानी में घोलकर पिलाती थी l अब जब वे हस्तिनापुर में पांडवों को शस्त्र विद्या , धनुर्विद्या सिखाने के आचार्य बन गए तब उनकी गरीबी दूर हुई l कौरवों और पांडवों की शिक्षा पूर्ण हो गई , दुर्योधन युवराज बन गया तब भी वे महलों में ही रहे और दुर्योधन की कृपा से राजसत्ता का सुख भोगते रहे l दुर्योधन द्वारा पांडवों के प्रति किए जाने वाले प्रत्येक षड्यंत्र पर वे मौन रहे , यहाँ तक कि भरी सभा में द्रोपदी के चीर -हरण पर भी मौन रहे l यह मौन उनकी स्वीकृति था l वे जानते थे कि दुर्योधन के विरोध से उन्हें भी विदुर की भांति शाक -पात पर आना पड़ेगा , ये सुख उनसे छिन जायेगा l मनुष्य अपनी मानसिक कमजोरियों से ही हारा हुआ है l परिवार हो , समाज हो या सारा संसार --- जिसके पास भी शक्ति है वह उसके अहंकार में अपनी ताकत का दुरूपयोग करता है , लोगों की कमजोरियों का फायदा उठाता है और जो उसके अहंकार को चुनौती दे , उसे मिटाने की जी -तोड़ कोशिश करता है , वह मदांध हो जाता है और उस अद्रश्य सत्ता को भी चुनौती देने लगता है l यही संसार है l
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- "चिंता मनुष्य को वैसे ही खा जाती है , जैसे कपड़ों को कीड़ा l बहुत चिंता करने वाले व्यक्ति अपने जीवन में चिंता करने के सिवा और कुछ सार्थक नहीं कर पाते और चिंता से अपनी चिता की ओर बढ़ते हैं l " चिंता की घुन क्या होती है , यह स्पष्ट करने वाला एक प्रसंग है ---- दो वैज्ञानिक --एक युवा और एक वृद्ध आपस में बात कर रहे थे l वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा ---" चाहे विज्ञानं कितनी भी प्रगति क्यों न कर ले , लेकिन वह अभी तक ऐसा कोई उपकरण नहीं ढूंढ पाया , जिससे चिंता पर लगाम कसी जा सके l " युवा वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हुआ और बोला --चिंता तो बहुत साधारण बात है , इसके लिए उपकरण ढूँढने में क्यों समय नष्ट किया जाए l तब वृद्ध वैज्ञानिक उसे अपनी बात समझाने के लिए घने जंगलों की ओर ले गए l वहां एक विशालकाय वृक्ष के सामने खड़े हो गए और उस युवा वैज्ञानिक से कहा ---- " इस वृक्ष उम्र लगभग चार सौ वर्ष है , इस वृक्ष पर चौदह बार बिजलियाँ गिरी l चार सौ वर्षों से अनेक तूफानों का इसने सामना किया लेकिन फिर भी यह धराशायी नहीं हुआ , मजबूती से खड़ा रहा l लेकिन अब देखो इसकी जड़ों में दीमक लग गई l दीमक ने इसकी छाल को कुतर -कुतरकर तबाह कर दिया और अब यह वृक्ष गिरने की कगार पर है l इसी तरह चिंता की दीमक भी एक सुखी , समृद्ध और ताकतवर व्यक्ति को चट कर जाती है l " आचार्य श्री का कहना है ---- 'चिंता करने के बजाय स्वयं को सदा सार्थक कार्यों में संलग्न रखें l जीवन के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखना और मन को अच्छे विचारों से ओत -प्रोत रखना --ऐसे उपाय हैं ,जिनसे मन को चिंतामुक्त किया जा सकता है l '
12 September 2022
अनमोल मोती
संत स्वामी करपात्री जी महाराज ने ' रामायण मीमांसा ' नामक ग्रन्थ की रचना की l ग्रन्थ को प्रकाशन के लिए उन्होंने प्रेस में भेज दिया l बहुत दिनों तक ग्रन्थ प्रकाशित न होने पर उन्होंने राधेश्याम खेमका जी से इसका कारण पूछा l उन्होंने उत्तर दिया ---- "महाराज , ग्रन्थ तो तैयार है , लेकिन कुछ लोगों की भावना है कि उसमे आपका एक सुंदर चित्र छापा जाये l चित्र के तैयार होने में विलंब हो जाने के कारण ही ग्रन्थ अब तक तैयार नहीं हो पाया है l " स्वामी जी ने तुरंत प्रतिवाद करते हुए कहा --- " ख़बरदार ! ऐसी गलती नहीं करना l मेरी पुस्तक भगवान श्रीराम के पावन चरित्र पर लिखी गई है l उसमें मेरा नहीं , बल्कि भगवान श्रीराम का चित्र होना चाहिए l "खेमका जी ने कहा --- " ठीक है , जैसा आप कहते हैं , वैसा ही होगा l " कुछ क्षण मौन रहकर करपात्री जी बोले ---- " संन्यासी को अपनी प्रशंसा और प्रचार से बचना चाहिए l समाज के लिए अच्छे विचार उपयोगी हैं , न कि मेरे चित्र l भगवान श्रीराम का चित्र देने से ही ग्रन्थ की गुणवत्ता बढ़ेगी l "
WISDOM ---
यहूदी धर्मगुरु रबाई वुल्फ के यहाँ चोरी हुई और उसमे मात्र चाँदी का एक मूल्यवान पात्र ही चोरी हुआ l रबाई की पत्नी को घर में काम-काज करने वाली नौकरानी पर शक हुआ l उससे पूछताछ करने पर जब कुछ पता न चला तो रबाई की पत्नी ने यह मामला यहूदी धर्म न्यायालय में सुपुर्द करने का निर्णय लिया l पत्नी को धर्म न्यायालय जाने की तैयारी करते देख रबाई ने भी वकील का चोगा पहनकर जाने की तैयारी की l पत्नी ने पूछा ---- " वे किस हेतु तैयार हो रहे हैं ? " तो रबाई ने उत्तर दिया --- " देवी ! मैं अवगत हूँ कि तुम्हारा संदेह घर की नौकरानी पर है , परन्तु जब तक अपराध सिद्ध न हो जाये , तब तक प्रत्येक व्यक्ति को समुचित न्याय पाने का अधिकार है l मेरी पत्नी होने के कारण आपको सरकारी वकील मिल जायेगा , परन्तु अशिक्षित नौकरानी एक वकील का शुल्क शायद न दे सके , इसलिए मैं उसकी ओर से जिरह करने जा रहा हूँ , ताकि हमारे परिवार की धर्म और न्याय की परंपरा अक्षुण्ण रहे l "
11 September 2022
WISDOM ----
एक बार रानी रासमणि के गोविन्द जी की मूर्ति पुजारी के हाथ से गिरने के कारण खंडित हो गई l रानी रासमणि ने ब्राह्मणों से इलाज पूछा l ब्राह्मणों ने खंडित मूर्ति को गंगा में विसर्जित कर नई मूर्ति बनवाने का सुझाव दिया l उनके इस सुझाव से रानी बहुत दुःखी हुईं कि जिन गोविन्द जी को इतनी श्रद्धा , भक्ति के साथ पूजा जाता रहा , उन्हें अब गंगा में विसर्जित करना पड़ेगा l उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से इस संबंध में पूछा तो वे बोले ----- "यदि आपके किसी सम्बन्धी का पैर टूट जाता तो आप उसकी चिकित्सा करवातीं या उसे नदी नदी में प्रवाहित करतीं ? रानी रासमणि उनका आशय समझ गईं l उन्होंने खंडित मूर्ति को ठीक कराया और पहले की भांति पूजा आरंभ कर दी l एक दिन किसी ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से पूछा --- " मैंने सुना है इस मूर्ति का पैर टूटा है l l" इस पर वे हंसकर बोले ---- "जो सबके टूटे को जोड़ने वल्र हैं , वे स्वयं टूटे कैसे हो सकते हैं l "
WISDOM --
कर्म फल ---- जब गौतम बुद्ध श्रावस्ती विहार कर रहे थे तो महापाल नामक व्यापारी उनके प्रवचनों से अत्यंत प्रभावित हुआ l उसने अपना घर छोड़ दिया और बुद्ध से दीक्षा लेकर एक गाँव में कठोर साधना करने लगा l उसके साथ ऐसा कुछ हुआ कि कि उनके नेत्रों की द्रष्टि चली गई उसके बाह्य चक्षु प्रकाश विहीन हो गए l अब लोग उसे चक्षुपाल कहने लगे l तथागत चक्षुपाल के जीवन को पवित्र बताया करते थे l एक बार किसी शिष्य ने बुद्ध से पूछा ---" यदि चक्षुपाल का जीवन पवित्र है तो वह अँधा कैसे हो गया ? " बुद्ध बोले --- " पूर्व जन्म में चक्षुपाल वैद्य था l एक बार एक अंधी महिला उसके पास दवा माँगने आई और यह कहा कि यदि उसे अंधेपन से मुक्ति मिल गई तो वह उसकी दासी बनना स्वीकार कर लेगी l वैद्य की दवा से उसके नेत्र ठीक हो गए , लेकिन वचन याद आने पर उसने वैद्य से झूठ कह दिया कि नेत्र ठीक नहीं हुए हैं l वैद्य को अपनी दवा पर भरोसा था , इसलिए उसने उस झूठी स्त्री को दण्डित करने के लिए उसे अंधे हो जाने की दवा दे दी l उस दवा के प्रयोग से वह स्त्री अंधी हो गई l इसी पाप के परिणाम स्वरुप चक्षुपाल इस जन्म में अँधा हुआ है l " वैद्य का कर्तव्य और उसका धर्म है रोगी को अपनी सामर्थ्य अनुसार स्वस्थ करने का पूर्ण प्रयत्न करना l लेकिन वह अपने अहंकार और बदले की भावना से अपने धर्म से च्युत हो गया और जानबूझकर उसे गलत दवा दे दी जिसके कारण वह अंधी हो गई l इससे शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी का अहित नहीं करना चाहिए l
9 September 2022
WISDOM ------
श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं --- अहिंसा आत्मा का नैसर्गिक स्वभाव है l यदि दूसरों को पीड़ा देने का भाव अंत:करण में नहीं है तो यह अहिंसा है l गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसी को धर्म का आधार मानते हुए कहा है कि --- परहित सरिस धर्म नहिं भाई l पर पीड़ा सम नहिं अधमाई l ' यदि दूसरे को दुःख देने का , पीड़ा पहुँचाने का भाव हमारे मन से विदा हो जाता है तो सच्ची अहिंसा जन्म लेती है l संत एकनाथ के जीवन की घटना है --- वे काशी से गंगाजल लेकर रामेश्वरम् को निकले l महीनों लम्बी यात्रा थी l बीच मार्ग में भगवान शिव एक गधे का रूप धारण कर आ बैठे l कराहने लगे l उनको कष्ट पाता देखकर एकनाथ का ह्रदय करुणा से भर उठा l अपने साथ कांवड़ का जल जो वे लेकर चल रहे थे . उसे उन्होंने पीड़ित गधे के मुख में डाल दिया l साथ चल रहे अन्य तीर्थ यात्री यह देखकर कुपित हो उठे और बोले --- " यह तुमने कैसा अपवित्र कार्य किया l " एकनाथ बोले --- " उसका कष्ट मुझसे देखा नहीं गया l यदि कष्ट के समय किसी को सहायता न कर सके तो कैसा धर्म ? " साथ के लोग यह सुनकर और कुपित हुए l इतनी देर में गधा फिर पीड़ा से कराहने लगा तो संत एकनाथ ने दूसरे कलश का गंगाजल भी उसके मुख में डाल दिया l साथ के यात्री यह देखकर उन्हें भला -बुरा कहते हुए चले गए l उनके जाने के बाद भगवान शिव जो गधे के रूप में लेटे हुए थे , अपने असली रूप में आ गए और एकनाथ से बोले --- " पुत्र ! तुमने ही धर्म का अर्थ समझा है l दूसरे के दुःख को देखकर जिसे स्वयं दुःख का अनुभव हो , वही सच्चा अहिंसक है , वही दैवी गुणों से युक्त है l "
8 September 2022
WISDOM ------
अनमोल वचन ---- ' फूल को किसी भी नाम से पुकारने पर उसकी सुगंध में अन्तर नहीं पड़ता l भगवान को किसी भी नाम से पुकारो , इससे फर्क क्या पड़ता है ? '
अनंत ब्रह्मांड पर आधिपत्य जमाने की मनुष्य की व्यर्थ की चेष्टा पर उसे चेताते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार बट्रेंड रसल ने लिखा है --- " अच्छा होता हम अपनी धरती ही सुधारते और बेचारे चंद्रमा को उसके भाग्य पर छोड़ देते l अभी तक हमारी मूर्खताएं धरती तक ही सीमित रही हैं l उन्हें ब्रह्माण्ड व्यापी बनाने में मुझे कोई ऐसी बात प्रतीत नहीं होती , जिस पर विजयोत्सव मनाया जाये l चंद्रमा पर मनुष्य पहुँच गया तो क्या ? यदि हम धरती को ही सुखी नहीं बना पाए तो यह प्रगति बेमानी है l " आज संसार के जो हालात हैं उसमें बट्रेंड रसल की यह पंक्तियाँ सार्थक प्रतीत होती हैं l
7 September 2022
WISDOM -----
लघु -कथा ---- मगध देश के राजा श्रेणिक एक बार भ्रमण के लिए महल से बाहर निकले l उनने देखा कि एक साधु नदी तट पर बैठे पूजा -पाठ में मग्न हैं l वे साधू महाराज के पास गए और बोले --- आप इतनी अल्प आयु में घर से निकल पड़े हैं l आपका चेहरा तप से दीप्तिमान हो रहा है l आप कौन हैं ? कहाँ रहते हैं ? साधु ने उत्तर दिया --- 'मैं एक अनाथ , असहाय हूँ l किन्तु इस उत्तर से राजा संतुष्ट नहीं हुए l उन्होंने कहा --- मुझसे कुछ न छिपाएं , सच -सच बताएं ल यदि आप अनाथ भी हैं तो मैं आपका संरक्षक हूँ l मेरे राज्य में कोई अनाथ और असहाय नहीं है l महात्मा ने कहा ---राजा , भले ही आप विपुल सम्पति के मालिक हैं l हठी , घोड़े , सैनिक , राज्यकोष , राजमहल सब कुछ है , फिर भी आप किसी न किसी मामले में अनाथ और असहाय हैं ही l किन्तु राजा मानने को तैयार न था l तब साधु ने आपबीती कह सुनाई l उसने कहा ---- मैं कौशाम्बी नगर के नगर सेठ धनराज का पुत्र हूँ l मुझे आइखों के रोग ने घेर लिया l समस्त उपचार कराए गए l वैद्य , राज वैद्य सभी परेशान व हैरान थे l धन -सम्पदा , मित्र , संबंधी , परिवार कोई भी मेरे रोग में सहायक न बन सके l ऐश्वर्य कुछ काम न आ सका तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया गया l बस , मैं प्रभु से प्रार्थना करने लगा l अंतत: ईश्वर ने मेरी प्रार्थना सुनी , वही भगवान काम आए और मैं रोगमुक्त हो गया l तब से मैं भगवान के ध्यान , स्मरण और उनके काम में लगा रहता हूँ l सेवा -पूजा के बाद बचे समय को अशक्त , रोगी , असहाय , निर्बलों , अभावग्रस्तों की सेवा में लगाकर व्यतीत करता हूँ l राजा की आँखें खुल गईं , वह समझ गया कि ईश्वर ही समर्थ हैं , सबकी सहायता कर पाने में l